क्यूंकि वह आतंकी की माँ थी !

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अँधेरा गहरा होता जा रहा था। वह अब भी डरती -कांपती सी झाड़ियों के पीछे छुपी बैठी थी। तूफान तो आना ही था। चला गया आकर ! वह अभी भी छुपी थी। गर्दन घुटनों में दबा रखी थी । कानों में जीप की घरघराहट और पुलिस के खटखटाते बूंटों की आवाज़ें अब भी गूंज रही थी। हिम्मत नहीं थी कि उठ कर अपने घर जाये और देखे। रेशम !! ओ रेशम !! अपने नाम की पुकार सुनी तो कुछ हौसला सा हुआ। नीलम चाची उसे ही पुकार रही थी। रेशम ! तू कहाँ है ? कितनी देर से तलाश रही हूँ ! चाची का गला भर्रा रहा था। चाची, मैं यहाँ हूँ ! लड़खड़ाते हुए रेशम चाची की तरफ बढ़ रही थी।