दो पेड़

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पढ़ाई में व्यस्तता के कारण कोई दस वर्ष बाद मामा के साथ ननिहाल जा रहा था | दोपहर में टूटी फूटी बस ने गाँव से कोई दो तीन किलोमीटर दूर उतारा, वहां से हम दोनों पैदल चल पड़े | रेगिस्तान में दोपहर का समय, ऐसे में भगवान भास्कर की भृकुटी पूरी तनी हुई थी | प्रचण्ड गर्मी के बीच रास्ते में बड़े रेत के धोरे पर चढ़ते चढ़ते साँसे फूलने लगी, पसीने से नहा लिए तो थोड़ा विश्राम करने की सोची | पास में केर की झाड़ी ही थी, उससे थोड़ा सा भी दूर हो जाओ तो छाया नहीं, चिपक