इत्ती सी, छोटी सी माँ

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इत्ती सी, छोटी सी माँ अन्नदा पाटनी जैसे ही खिड़की खोली कि एक छोटे से बच्चे के रोने की आवाज़ आई । सोचा कोई बात नहीं , थोड़ी देर में चुप हो जायेगा। पास रखे शेल्फ़ से पुस्तक निकाली । मन को एकाग्र कर पढ़ने का प्रयास करने लगी पर बच्चे के रोने की आवाज़ से मन बार बार उचट रहा था । मुझसे रहा नहीं गया । खिड़की से झाँक कर नीचे देखा तो नज़र आया कि दो पेड़ों के तनों के बीच रस्सी से दोनों सिरों से एक मटमैला कपड़ा बँधा हुआ था झूले के रूप में । उस में एक चार पाँच महीने का बच्चा लेटा हुआ बेतहाशा रोए चला जा रहा था । पास में खड़ी लगभग तीन साल की लड़की खड़ी उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी । रूखे उलझे बाल ,मैंली सी जगह जगह से फटी फ़्रॉक पहने हुए और मुँह पर ज़मीं मिट्टी की परतें जैसे कई दिनों से मुँह ही नहीं धुला हो । बेचारी बच्चे को कभी पुचकारे तो कभी गाए , कभी मुँह से अजीब सी आवाज़ें निकाले और कभी कपड़े के झूले को हिलाए पर बच्चा था कि चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था । मैंने इधर उधर नज़र घुमाई कि शायद बच्चे की माँ नज़र आ जाय पर वहाँ कोई दिखा ही नहीं । मुझसे नहीं रहा गया तो आवाज़ लगाई ,” अरे , क्यों रुला रही है उसे ? माँ कहाँ है ?” बच्ची ने ऊपर देखा पर कुछ नहीं बोली । मैंने खीज कर कहा , “ माँ को बुला न , कब से बच्चा रो रहा है । भाई ***