मौलिक शेर - 3

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ये बिछड़ना भी किस काम का रहा ना हम काम के रहे ना तुम काम के रहे... !------------जब से वो अनजान क्या हुए हम तो बेजान से हो गये... !--------------चलो ये भी इलज़ाम मान लेते हैं वे बफा तुम नहीं हम थे....!पर गलत ये भी तो नहीं मिरि हर वफ़ा से ख़फ़ा भी तो तुम थे.. !!-------------------रोज़ मर्रा ज़र्रा ज़र्रा हम जीते रहे... !तिरि यादो का गम हम पीते रहे.. !!--------------------ज़रूरी नहीं मुस्कुराने वाला ख़ुशी से ही मुस्कुराये.. !हो सकता हैं जिंदगी के गम इन मुस्कुराहटों में छिपाए... !!------------------मुस्कुराहटें तो वो मिरि रोज़ ले जाते हैं.. !और इश्क़ में मायुषगी का दाग़ हम पर