चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी - 5

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चिरइ चुरमुन और चीनू दीदी (कहानी पंकज सुबीर) (5) हमारे प्रश्न अब ख़त्म हो चुके थे । जो कुछ जानना था वो पता चल चुका था । अब कुछ और जानने की आवश्यकता भी नहीं थी । हमने पूछा ‘क्या आप जाना चाहते हैं ?’ कटोरी खसकी और नो को छूकर वापस आ गई । नो....? आज तक तो किसी आत्मा ने नहीं कहा था । जब भी पूछो तो चुपचाप यस करके चली जाती है । हम सबके पसीने छूट गये । जिन दोनों सुरेश और सुशील ने उँगली कटोरी पर रखी थी उनकी हालत और ख़राब थी ।