प्यार की साज़िश

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"तुम अपना... रंजो ग़म अपनी परेशा...नी मुझे दे दो....." साहिर साहब का ये गीत रेडियो में बज रहा था । और वो उदास अपनी बालकनी में बैठा दूर खेलते बच्चों को देख रहा था । जबसे उसकी जिंदगी से आभा गई थी ,उसकी जिंदगी मायूसी और ग़म के सागर में डूब गई थी । वो सोच रहा था, रिश्ते भी कांच के प्याले की तरह होते हैं, जिस दिन टेबल पर आते हैं ,उनके टूटने का वक्त भी तय हो चुका होता है । कभी किसी हाथ की ज़रा सी लापरवाही उसे चकनाचूर कर देती है, जिसके टुकड़े अब सिवा