सिर्फ तुम..

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सिर्फ तुम... यकीन नहीं होता कभी हम मिले थे कुछ तुम दर्द में थे, कुछ हमें भी गिले थे.. ये अधूरा इश्क़ कब पूरा सा हुआ, कब अधूरी सी ज़िन्दगी पूरी सी हुई.. ये बेदर्द सी खुशियां, इतनी हसीन क्यूं लग रही थी.. मोहब्बत तो दर्द से थी, तुमसे क्यूं हो रही थी.. कब तुम्हारी हंसी मेरी ज़िंदगी बन गयी, भटकी सी ज़िन्दगी को एक बन्दगी मिल गयी.. मेरी हर सांस में घुलता तेरा इश्क़, जैसे जन्मोजनम का साथी था.. मेरा मुझमें कुछ भी ना रहा.. बस तू ही तू मुझमें बाक़ी था... इतनी नज़दीकियां तो बढ़ा ली थी दिल