अमर प्रेम -- 6 - अंतिम भाग

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अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (6) तब राकेश हँसता हुआ बोला, “ देख हम सभी की ज़िन्दगी में ये क्षण आते ही हैं मगर हर कोई उसका डटकर मुकाबला नहीं कर पाता सिर्फ कुछ दृढ निश्चयी लोग होते हैं जो इस फेज से गुजर जाते हैं मगर बाकी की ज़िन्दगी अस्त व्यस्त हो जाती है......ऐसे में अगर वो इस रिश्ते को सिर्फ एक ऐसे रूप में लें जैसे राधा कृष्ण का था, जैसे वहाँ वासना का कोई स्थान नहीं था मगर रिश्ता इतना गहरा था कि जितना कृष्ण की पत्नियाँ भी कृष्ण को नहीं जानती थीं उतना राधा