मैं, रेजा और 25 जून

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मैं, रेजा और 25 जून सीमा शर्मा यह उम्र ही ऐसी होती है। सब कुछ अच्छा लगता है। सुंदरता और शोख रंग तो खींचते ही हैं, पर जो हट कर है, वह और अधिक आकर्षित करता है। शायद यह चुंबकीय उम्र होती है। खींचती है और खिंचती भी चली जाती है। मैं रोज ही उसे देखता था। लेकिन यह नहीं जानता था कि वह आंखों की भाषा समझती है या नहीं। उसे देख कर कभी नहीं लगा कि समझती होगी। वह देखती थी, पर आंखें बोलती नहीं थीं। जिसे आप साफ-साफ पढ़-सुन नहीं सकते, वह अधिक परेशान करता है। जो