भेड़िये

  • 4.1k
  • 999

भेड़िये ठंड कुछ बढ़ गई थी. बौखलाई-सी हवा हू-हू करती हुई चल रही थी. उसने शरीर पर झीनी धोती के ऊपर एक पुरानी चादर लपेट रखी थी, लेकिन रह-रहकर हवा के तेज झोंके आवारा कुत्ते की तरह दौड़ते हुए आते और चादर के नीचे धोती को बेधते हुए बदन को झकझोर जाते. वह लगातार कांप रही थी और कांपने से बचने के लिए उसने दोनों हाथ मजबूती से छाती से बांध लिए थे और दांतों को किटकिटाने से बचाने के लिए होठों को भींच रखा था. ‘भिखुआ आ जाता तो, कितना अच्छा होता.’ वह सोचने लगी –’किसी तरह छिप-छिपाकर दोनों