डॉ सतीश राज पुष्करणा जी की लघुकथाओं पर मेरा अभ्यास - 1

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डॉ. सतीश राज पुष्करणा ड्राइंग-रूम उमेश बाबू के ड्राइंग-रूम में प्रवेश करते हुए दीनानाथ ने कहा, “उमेश बाबू! ड्राइंग-रूम है तो बस आपका ! इतना सुन्दर, सुसज्जित तथा रख-रखाव वाला | एक-एक खिलौना ऐसा-कि मानो अभी बोल उठेगा |”भर्राई-सी धीमी, बुझी-सी आवाज़ उमेश बाबू के मुँह से निकली, “बोल उठेगा ! पर बोलता नहीं है ! कभी नहीं बोलेंगे ये खिलौने ! छह माह पहले मेरे घर में भी एक खिलौना था, जो बोलता था | तब ये सारे खिलौने बोलते थे| मेरा ड्राइंग-रूम भी औरों की तरह ही था | मेरी पत्नी भी व्यस्त थी | बस, उस खिलौने के जाते