दरवाज़े

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मंदिर में आरती और घंटियों का मधुर संगीत मन की गहराइयों में उतर रहा था। धूप और अगरबत्तियों की सुगन्ध मन-मस्तिष्क को तरोताजा कर रही थी। फरवरी की ठंडी सुबह में खिली गुनगुनी धूप का स्पर्श ऐसा था कि महेन्द्र आँखें बन्द किये और हाथ जोड़े ईश्वर के ध्यान में डूबता जा रहा था। नये शहर में नयी नौकरी की पहली तनख्वाह के बाद इतना तो बनता ही है कि आज छुट्टी के दिन ईश्वर को प्रणाम किया जाए। इसी विचार से वह अपनी पहली-पहली तनख्वाह से कुछ मिठाई और फल लेकर मंदिर आया था। सबकुछ पंडित जी के हाथों