स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (2)

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स्वप्न हो गये बचपन के दिन... (2)माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेसी...? (क )बात बहुत पुरानी है। तब की, जब आलोक-भरे इस संसार को देखने के लिए मैंने आँखें भी नहीं खोली थीं, उसके भी कई-कई बरस पहले की। यह कहानी मैंने पिताजी से सुनी थी जो मेरी स्मृति में कहीं चिपक कर रह गयी है। आप सुनेंगे? कहूँ कहानी, वही पुरानी... ?मैंने अपनी पितामही (रामदासी देवी) को बाल्यकाल में देखा था, तब वह ८०-८५ के बीच की रही होंगी। वृद्धावस्था की उस उम्र में भी वह बहुत सुन्दर दिखती थीं, जबकि रुग्ण और शय्याशायी थीं! अत्यंत