वीर शिरोमणिःमहाराणा प्रताप।(भाग-(२)

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सांगा को मिली पराजय अब, भीतर ही भीतर खाती है।बाबर से बदला लेने को,हर पल ही जलती छाती है।।प्रण उसने कठिन लिया ऐसा, प्रतिशोध नहीं जब तक लूंगा।सिर पर पगड़ी अब तब जाये, महलों में पग भी तब दूंगा।।अगणित घाव लगे थे तन पर, वह था पूर्णतः शक्ति हीन।पर बदले को ऐसे तड़पे, जैसे तड़पती जल बिन मीन।।जब उसने सुुना कि बाबर ने, अब चंदेरी को घेरा है।मेदनी राय से मित्रता है, बाबर भी बैरी मेेेरा है।।चाकर से तत्क्षण बतलाया, हमने मन में यह ठाना है।मुझको चंदेरी मदद हेतु ,रण में अवश्य ही जाना है।।अतः देर अब करो नहीं तुम,