किस मुकाम तक

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किस मुकाम तक हरियश राय “मैं बैठ सकता हूं यहां ।’ उन्होंने सकुचाते हुए मुझसे पूछा । लंबा कद । सिर पर गोल टोपी । बेतरतीब ढंग से बढ़ी हुई दाढ़ी । लंबा सफेद कुर्ता, कुर्ते के ऊपर नेहरू कट जॉकेट, टखनों से ऊपर की सलवार, पैरों में चमड़े के जूते, चेहरे पर मासूमियत । पचास–पचपन वर्ष के आसपास उम्र रही होगी । उन्हें देखकर टैगोर की कहानी काबुलीवाला के पठान की याद हो आई थी । यह अस्पताल का रिसेप्शन हॉल था । मंैने अख़बार से अपना ध्यान हटाते हुए कहा, “जरूर बैठिये ।’’ मैंने साथ वाली कुर्सी