रुहानियत (दास्ताँ - ए - रूह) का शायरनामा

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रुहानियत (दास्ताँ - ए - रूह) का शायरनामा... 1. तुम्हारे होठों को छूकर जो गिला की रोशनी आई थी, इतना गुरूर तो अब भी है की, रोशन करने के लिए उन शिकवों को अंधेरा तो हम से ही मिला था।।। 2. राही बन हुए राह से जब रूबरू बरबस ही रिश्तों कि मंज़िल पे चल दिए, आए तो थे महफ़िल में अनजानों की तरह, अब लेकर संग कारवां ए संगदिल चल दिए।। 3.जिंदगी तेरी जिद के तराने भी अजीब है, आंखो से निकलते इन अश्कों के ये बहाने भी अजीब है।। 4. जानकार भी अनजान बनते हो, आप हो नहीं