वीर शिरोमणिः महाराणा प्रताप। (भाग-(३)

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चित्तौड़ दुर्ग जीता अकबर, राणा के चक्षु हुये थे सुर्ख।उदयसिंह के हाथों फिसला,धोखे से रणथंभौर दुर्ग।।सुरजन ने पीठ छुरा भोंका, गढ़ सौंपा जाकर अकबर को।तलवार नहीं पकड़ी उसने, लड़ने न दिया था लश्कर को ।।पुनः नये साहस से राणा , शक्ति संंचय में जुटे हुये थे।आजादी पर आंच न आये,इसीलिये वह डटे हुये थे।।उदयसिंह ने गोगुंदा में, उदयपुर नगर को बसा दिया। पुत्र प्रताप कुछ बड़े हुये, प्रण आजादी का उठा लिया।।भाला, बरछी,तीर चलाना, नहीं रहा प्रताप का सानी ।उनके किस्सों को सुन-सुन कर, अकबर को होती हैरानी।।पिता-पुत्र ने लक्ष्य था ठाना,हम मुगल वंश का नाश करें।नामोनिशान इन यवनों का, भारत