समुन्दर

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समुन्दर " मैं तो मान बैठा था कि अब कुछ नहीं बचा है । क्लाइमेक्स अपनी बात कहकर अदृश्य हो चुका है । जिस कथा के प्रवाह में, मैं पिछले तीन घंटे में खुद को खो चुका था, उसने अपनी तार्किक परिणति को प्राप्त कर लिया है ।अब यही मेरी नियति है और यही अब मेरी जिंदगी की आखिरी सच्चाई है । मुझे अपनी आँखों में उतरे हुए बेबस पानी को पोंछ लेना चाहिए। इसी भूलभुलैया में ही मुझे सुब्ना भी है ए उतराना भी है । मैं चाहूँ या न चाहूँ मुझे अब उसी तालाब में रहना है। यही