अन्‍न जल

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अन्न-जल यदि भयानक तूफान से ऐसा होता, तो भी हरि सिंह चौधरी संतोष कर लेते, यदि भूकंप में उनके खेतों की जमीन धंस जाती, तब भी वे उफ़ तक न करते और खुदा का खौफ मानकर सब्र कर लेते, यदि सूखे से जमीन दरक जाती तो भी अपने मन को किसी न किसी तरह मना लेते. पर ऐसा हुआ नहीं. हुआ कुछ और ही. सारा जीवन खेतों में बीता , गर्मी, सर्दी, बारिश हर मौसम में खेतों को सींचा, अपना पसीना बहाया, जो मन में आया, वही किया. कभी किसी की बात नहीं मानी, पर अब जिन्दगी के इस