एक अप्रेषित-पत्र - 2

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एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म विरह गति प्रिय रेवा, मेरे जीवन का पल—पल तुम्हें न्योछावर! तुम्हें रूठकर यहाँ से गये, आज पूरा एक माह होने जा रहा है। कल शाम पापा जी का पत्र मिला था कि तुम अभी कुछ और दिन अपने मम्मी—पापा के पास देहली में ही रहना चाहती हो। रेवा! तुम क्यों नहीं आयीं ? मैं जब तुम्हें लेने गया था, तब भी मेरे साथ आना तो दूर तुम मुझ से मिली भी नहीं थीं। अभी तो हमारे विवाह को हुए एक वर्ष भी नहीं बीता है......। आगे लम्बी जिन्दगी पड़ी है। ऐसे कैसे चलेगा... भाई! मैं मानता