Ek-Apreshit-Patra by Mahendra Bhishma | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels एक अप्रेषित-पत्र - Novels Novels एक अप्रेषित-पत्र - Novels by Mahendra Bhishma in Hindi Letter (15) 3k 15.4k मैं एक नन्हा—सा वृक्ष हूँ। इस सुन्दर संसार में आए मुझे कुछेक वर्ष ही हुए हैं। नीले आकाश के नीचे, पर्वतमालाओं की तलहटी में विस्तृत सुरम्य वन के ठीक मध्य में लताओं से आच्छादित वृक्षों की हमारी रमणीक बस्ती ...Read Moreमेरे माता—पिता, भाई—बन्धु एवं बुजुर्ग सभी मेरे आस—पास हैं, जिनकी छत्रछाया में मैं पल—बढ़ रहा हूँ। प्रकृति के महत्त्वपूर्ण घटक— नाना प्रकार के जीव—जन्तु हमारे बीच पलते—बढ़ते हैं। जब सूर्य देव आकाश के बीचो बीच आ जाते हैं, तब हमारी जड़ों के ऊपर की कुछ भूमि पत्तों से छनकर आते प्रकाश से प्रकाशित हो उठती है। Read Full Story Download on Mobile Full Novel एक अप्रेषित-पत्र - 1 459 1.5k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म बचाओ मैं एक नन्हा—सा वृक्ष हूँ। इस सुन्दर संसार में आए मुझे कुछेक वर्ष ही हुए हैं। नीले आकाश के नीचे, पर्वतमालाओं की तलहटी में विस्तृत सुरम्य वन के ठीक मध्य में लताओं से आच्छादित ...Read Moreकी हमारी रमणीक बस्ती है। मेरे माता—पिता, भाई—बन्धु एवं बुजुर्ग सभी मेरे आस—पास हैं, जिनकी छत्रछाया में मैं पल—बढ़ रहा हूँ। प्रकृति के महत्त्वपूर्ण घटक— नाना प्रकार के जीव—जन्तु हमारे बीच पलते—बढ़ते हैं। जब सूर्य देव आकाश के बीचो बीच आ जाते हैं, तब हमारी जड़ों के ऊपर की कुछ भूमि पत्तों से छनकर आते प्रकाश से प्रकाशित हो उठती Read एक अप्रेषित-पत्र - 2 356 1.7k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म विरह गति प्रिय रेवा, मेरे जीवन का पल—पल तुम्हें न्योछावर! तुम्हें रूठकर यहाँ से गये, आज पूरा एक माह होने जा रहा है। कल शाम पापा जी का पत्र मिला था कि तुम अभी कुछ ...Read Moreदिन अपने मम्मी—पापा के पास देहली में ही रहना चाहती हो। रेवा! तुम क्यों नहीं आयीं ? मैं जब तुम्हें लेने गया था, तब भी मेरे साथ आना तो दूर तुम मुझ से मिली भी नहीं थीं। अभी तो हमारे विवाह को हुए एक वर्ष भी नहीं बीता है......। आगे लम्बी जिन्दगी पड़ी है। ऐसे कैसे चलेगा... भाई! मैं मानता Read एक अप्रेषित-पत्र - 3 250 1k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म रंजना रंजना मेरे ऑफिस की नेत्री है। चपरासी से लेकर बॉस तक सभी से वह एक ही अन्दाज में मिलती। सभी के साथ उसका व्यवहार निरपेक्ष रहता। ऑफिस में ऐसा कोई नहीं था, जो उसे ...Read Moreन करता हो। चाहे वह पोपले मुँह वाले बड़े बाबू राधेश्याम हों या खिजाब लगाकर आने वाले ऑफिस सुपरिटेण्डेण्ट मौलाना बदरुद्दीन हों, जिनकी मेंहदी लगी दाढ़ी की सुन्दरता में ग्रहण लगाते पान से गन्दे हो चुके दाँत और लटकते मसूड़ों के हरे रंग जैसी थैलियाँ, जो उनके हँसने पर सामने वाले को अपनी आँखें फेरने पर मजबूर कर देती थीं। Read एक अप्रेषित-पत्र - 4 284 1.5k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म अब नाथ कर करुणा.... कुछ दिनों से क्या; बल्कि काफी दिनों से उसे सीने के ठीक मध्य से थोड़ा—सा दाहिनी ओर पसलियों के आस—पास, मीठा—मीठा—सा दर्द महसूस होता रहता था। विशेषकर तब, जब कुछ ठंडा—गर्म ...Read Moreलेने के बाद आने वाली स्वाभाविक खाँसी या तेज छींक से उसके दर्द की मिठास कुछ बढ़ जाती थी। मीठा दर्द उसे अच्छा लगता था। एक दो बार खाँसकर या छींक कर वह इस मीठे दर्द को और महसूस कर लेता था। पुलिस की नौकरी ने उसकी बेरोजगारी तो खत्म कर दी थी, परन्तु दिन—भर का सुख—चैन उससे छिन—सा चुका Read एक अप्रेषित-पत्र - 5 204 1.1k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म कोई नया नाम दो ‘‘जागते रहो'' मध्य रात्रि की निस्तब्धता को भंग करती सेन्ट्रल जेल के संतरी की आवाज और फिर पहले जैसी खामोशी। मैं जाग रहा हूँ। 3श् ग 6श् की काल कोठरी में ...Read Moreकी चहल कदमी और मच्छरों की उड़ानों के बीच इस कोठरी में मुझे आये अभी चार दिन ही हुए हैं। यहाँ मुझे अन्य कैदियों से एकदम अलग रखा गया है। सभी मुझे नृशंस हत्यारा समझते हैं। चार दिन पहले की बात है, जब सेशन जज ने भरी अदालत में अपना फैसला सुनाया था, ‘‘तमाम गवाहों के बयानात व दोनों पक्षों Read एक अप्रेषित-पत्र - 6 193 1.1k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म कर्कशा ‘‘जवानी में दो—दो भोग चुकने के बाद अब बुढ़ापे में तीसरी करने की मंशा है क्या?‘‘ कृशकाय—कंकाल स्वरूपा पत्नी की कर्कश आवाज सुनकर प्रोफेसर साहब को काठ—सा मार गया। उनकी पत्नी की तनी भृकुटि ...Read Moreकोटरों से बाहर निकलने को बेचैन आँखें देख लग रहा था कि अब कुछ ही पलों में वह प्रोफेसर साहब की कमीज के कालर पर झूलते हुए उनके गाल पर चाँटा जड़ देगी। ठगे—से खड़े, पितातुल्य प्रोफेसर साहब के दोनों हाथ में फँसी अपनी हथेलियोें को निकाल, पत्नी के सामने निरीह, दीनहीन से प्रोफेसर साहब की आँखों में भरपूर दृष्टि Read एक अप्रेषित-पत्र - 7 167 929 एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म वितृष्णा अनार का जूस लेकर जब मैं वापस वार्ड में पहुँची, तो देखा बाबूजी अपनी आँखे बन्द किये झपक चुके थे। उनकी नींद में व्यवधान न हो यह सोचकर मैंने धीरे से जूस वाली थैली ...Read Moreबॉक्स के अन्दर रख दी और बेड के समीप रखे ऊँचे टीन के स्टूल पर बैठ कर बाबूजी के स्वतः जागने की प्रतीक्षा करने लगी। अभी मुश्किल से दस—बारह मिनट ही बीते होंगे कि वार्ड में ही बाबूजी के बेड से कोई आठ—दस पलंग आगे की ओर एक महिला का कर्कश स्वर गूँजा। मेरी तरह लगभग सभी का ध्यान उस Read एक अप्रेषित-पत्र - 8 179 929 एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म सतसीरी शहर में कर्फ्यू को लगे आज तीसरी रात है। अस्सी बरस की बूढ़ी दीना ताई की आँखों से नींद कोसों दूर है। जाग घर, मुहल्ला अौर शहर के अन्य बाशिंदे भी रहे थे। भय, ...Read Moreसे आक्रांत हो सुबह होने का बेमतलब—सा इंतजार, जैसे सूरज के उगने से, चिड़ियों के चहचहाने से शहर—भर में फैला दंगा—फसाद, मार—काट सब बंद हो जायेगा। आशा ही जीवन है, जीने की जिजीविषा सभी में होती है। दीना ताई की तरह बूढ़ी हो चली सतसीरी गाय रँभा उठी। कान से बहरी दीना ताई के अलावा परिवार और बिल्डिंग में रहने Read एक अप्रेषित-पत्र - 9 166 895 एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म साथ सकलेचा के दो फोन आ चुके थे। रूबी बेड पर पड़ी ऊहापोह की स्थिति में थी। तेजी से पतनोन्मुख सुदर्शन बोकाड़िया ग्रुप ऑफ कम्पनीज़ की सबसे लाभदायक कम्पनी बोकाड़िया मल्टी मास कम्युनिकेशन की ओर ...Read Moreआज सायं शहर के सुप्रसिद्ध पंच सितारा होटल ‘ताज‘ में फैशन शो होने जा रहा है, जिसमें देश—विदेश के धन कुबेर पहुँच रहे हैं। कभी बोकाड़िया मल्टी मास कम्युनिकेशन के सर्वेसर्वा सुदर्शन बोकाड़िया की सबसे नजदीकी, सबसे चहेती मॉडल थी वह ... ‘रूबी कपाड़िया‘। पारिवारिक सदस्य की हैसियत से वह उनके परिवार के साथ ही उन्हीं के भव्य आवास ‘गोल्डन Read एक अप्रेषित-पत्र - 10 199 1.1k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म मसीहा चाय का घूँट भरते हुए असगर ने विक्रम में चढ़ रही सवारियों की ओर ताका, फिर दूसरा घूँट भरने से पहले उसने टैम्पो ड्राइवर की ओर देखा। माथे पर सिंदूरी टीका लगाये वह राधेश्याम ...Read Moreथा, जो चेहरे पर संतोष के भाव लिए बीड़ी फूँक रहा Read एक अप्रेषित-पत्र - 11 160 1.2k एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म मग़रिब की नमाज ‘‘सुषमा! प्लीज.... देर हो रही है।'' “बस्स... दो मिनट.... अौर जज साहब।” “क्या सुषमा....? पिछले बीस मिनट से अभी तक तुम्हारे दो मिनट पूरे नहीं हुए?” मैंने रिस्टवाच में देखते हुए कहा। ...Read Moreक्यों डैडी को तंग करती हो....।” उर्वशी मेरी पाँच साल की बेटी मेरे लिए हमदर्दी जताते बोल पड़ी। “लो भई.... हो गयी तैयार...।” सुषमा ने उर्वशी के गालों पर तेज चुम्बन जड़ते हुए कहा। “.... अौर जो मैं पिछले आधे घण्टे से....।” मैंने अपनी बारी न आते देख सुषमा को अपने गाल की अौर संकेत करते हुए कहा। “आप भी....” Read एक अप्रेषित-पत्र - 12 131 845 एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म मुन्शीजी मुन्शी गनेशी प्रसाद को विवाह किये बीस बरस बीत चुके हैं अौर इस कस्बाई शहर में आए सत्रह बरस। तब यहाँ नयी—नयी तहसील खुली थी। पास पड़ोस के गाँव के हाई स्कूल, इण्टर पास ...Read Moreबेरोजगारों की तरह उसने भी जानकी बाबू का बस्ता पकड़ लिया था। गनेशी प्रसाद की माँ उनके बचपन में ही भगवान को प्यारी हो गयीं थीं अौर पिता उनके व्याह के दूसरे साल। गाँव की बची—खुची जमीन और मकान बेचकर, जो जमा पूँजी बनी उससे गनेशी प्रसाद ने अपनी छोटी बहन का विवाह खाते—पीते घर में कर दिया अौर अपनी Read एक अप्रेषित-पत्र - 13 140 875 एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म एक रुपया ‘‘राम नाम सत्य है।'' ‘‘राम नाम सत्य है।'' सेठ राम किशोरजी की शवयात्रा में सम्मिलित दूसरोें के साथ मैंने भी दुहराया। स्वर्गीय सेठ रामकिशोरजी ग्यारहवीं कक्षा के मेरे सहपाठी अनूप के पिता थे। ...Read Moreन तो वृद्ध थे और न ही वयोवृद्ध, बल्कि पचासेक बरस की उम्र के रहे होंगे। वह बीमारियों से दूर इकहरे शरीर के मालिक थे। मेरे अलावा उनकी मृत्यु को सभी काल की नियति मान रहे हैं। सच, वह बच सकते थे, सोलह आने। अनूप के अग्रज घुटे सिर, सफेद धोती बांधे, बाँए हाथ में आग की हाण्डी लिए अर्थी Read एक अप्रेषित-पत्र - 14 - अंतिम भाग 144 855 एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म एक अप्रेषित पत्र दीदी का पत्र आशा के विपरीत आया था। पत्र बहुत संक्षेप में था, उनकी आदत के बिल्कुल उलटे। पत्र में लिखीं चार पंक्तियों ने पत्नी रजनी और बेटी सुमेधा को तो परेशान ...Read Moreही दिया था, मैं भी कम परेशानी में नहीं हूँ। आखिर दीदी ने ऐसा क्यों लिखा? एकदम दो टूक जवाब, जिसकी वे आदी नहीं हैं; फिर ऐसा क्यों किया उन्होंने प्रश्न, उत्तर का समाधान न पा और उलझता जा रहा था। वह सुमेधा को अपने पास रख कर क्यों नहीं पढ़ा सकतीं थीं? क्या असुविधा होती उन्हें? पति—पत्नी और दो Read More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Novel Episodes Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Humour stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Social Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything Mahendra Bhishma Follow