औरतें रोती नहीं - 18

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औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 18 ये दाग-दाग अंधेरा सप्ताह भर बाद सुशील एक दिन अचानक सुबह-सुबह घर पर आ धमके। मन्नू उठ चुकी थी। सुशील के चेहरे से लग रहा था कि कोई बात है। तनाव से भरा। मन्नू चाय बना लाई। इन दिनों घर का काम करने के लिए पूरे वक्त की सर्वेंट रख ली है उसने। बच्ची सी दिखने वाली षोडसी संजुक्ता। उसके साथ मन्नू का टाइम भी मजे-मजे में कट जाता है। संजुक्ता सब्जी लाने बाजार तक गई है। इसलिए सुशील का हाथ पकड़ा जा सकता है। बालों में उंगली फेरते हुए पूछा जा सकता