द्रौपदी..

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द्रौपदी..!!? मैं द्रोपदी,कितना असहज था ये स्वीकारना कि मेरे पांच पति होगें, माता कुन्ती ने कितनी सरलता से कह दिया कि जो भिक्षा में मिला सभी भाई आपस मे बांट लों,किसी ने कभी विचार किया कि उस क्षण मेरे हृदय पर क्या बीती होगी, किन्तु नहीं ये तो कदाचित् विचार करने योग्य कथन था ही नहीं, यहां तक माता कुन्ती भी एक स्त्री होकर,स्त्री का हृदय ना बांच पाई,या ये भी हो सकता हैं कि मैं उनकी पुत्री नहीं पुत्रवधु थी,कदाचित् ये विचार करने का प्रश्न ही नहीं उठता।। मुझे पवित्र रखने हेतु एवं पाण्डव परिवार में सौहार्द बनाए