तेरे शहर के मेरे लोग - 6

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( छह ) मेरे जीवन में आने वाले इस परिवर्तन का असर मेरे मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों पर क्या पड़ने जा रहा था, ये देखना भी दिलचस्प था। मैं अपनी इक्कीस वर्ष की सरकारी नौकरी छोड़ कर बैंक से एक शिक्षण संस्थान में जाने वाला था। कुछ लोगों को तो इस बात पर ही गहरा अचंभा था कि ऐसा हुआ ही कैसे, और अब मुझे शिक्षण संस्थान में क्या कार्य और कौन सा पद मिलेगा।कुछ मित्रों को इस बात पर हैरानी थी कि गांव छोड़ कर शहर और शहर छोड़ कर महानगर तो दुनिया जाती है, पर महानगर से छोटे शहर और फ़िर शहर