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Tere Shahar Ke Mere Log by Prabodh Kumar Govil | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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तेरे शहर के मेरे लोग by Prabodh Kumar Govil in Hindi
Novels

तेरे शहर के मेरे लोग - Novels

by Prabodh Kumar Govil Matrubharti Verified in Hindi Biography

(62)
  • 4.2k

  • 22.9k

  • 1

( एक )जबलपुर आते समय मन में ठंडक और बेचैनियों का एक मिला- जुला झुरमुट सा उमड़ रहा था जो मुंबई से ट्रेन में बैठते ही मंद- मंद हवा के झौंकों की तरह सहला भी रहा था और कसक ...Read Moreरहा था।ईमानदारी से कहूं तो बेचैनी ये थी, कि लो, फ़िल्म नगरी से नाकामयाबी का गमछा लपेटे एक और कलमकार भागा!ठंडक इस बात की थी कि जिन लोगों ने मुंबई में रात - दिन भाग - दौड़ करते हुए देखा था, वो अब सफल न हुआ जानकर दया- करुणा की पिचकारियां छोड़ते हुए रोज़- रोज़ नहीं दिखेंगे।मेरे व्यक्तित्व अगर आप

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तेरे शहर के मेरे लोग - 1

  • 644

  • 2.2k

( एक )जबलपुर आते समय मन में ठंडक और बेचैनियों का एक मिला- जुला झुरमुट सा उमड़ रहा था जो मुंबई से ट्रेन में बैठते ही मंद- मंद हवा के झौंकों की तरह सहला भी रहा था और कसक ...Read Moreरहा था।ईमानदारी से कहूं तो बेचैनी ये थी, कि लो, फ़िल्म नगरी से नाकामयाबी का गमछा लपेटे एक और कलमकार भागा!ठंडक इस बात की थी कि जिन लोगों ने मुंबई में रात - दिन भाग - दौड़ करते हुए देखा था, वो अब सफल न हुआ जानकर दया- करुणा की पिचकारियां छोड़ते हुए रोज़- रोज़ नहीं दिखेंगे।मेरे व्यक्तित्व अगर आप

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तेरे शहर के मेरे लोग - 2

  • 303

  • 1.1k

( दो )एक बात कुदरती हुई कि मैं जो उखड़ा- उखड़ा सा जीवन- अहसास लेकर मुंबई से रुख़सत हुआ था, वो आहिस्ता- आहिस्ता यहां जमने लगा।न जाने कैसे, मुझे ऐसा लगने लगा कि मुझे अपने जीवन के सितार के ...Read Moreको फ़िर से कसना चाहिए। किसी वाद्य यंत्र के तारों का एक बार ढीला हो जाना कलाकार की विफ़लता नहीं हो सकती। अलबत्ता ये एक नई चुनौती ज़रूर है। इसे इसी तरह स्वीकार करना चाहिए।मैं कभी- कभी नर्मदा नदी पर जाने लगा।एक- दो बार आरंभ में तो सहकर्मी और मित्र लोग मुझे शहर घुमाने के क्रम में एक पर्यटक की

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तेरे शहर के मेरे लोग - 3

  • 280

  • 1.3k

( तीन )एक बात आपको और बतानी पड़ेगी।बड़े व भीड़ - भाड़ वाले शहरों में रहते हुए आपकी इन्द्रियां या तो आपके काबू में रहती हैं या फ़िर अनदेखी रह जाती हैं। लेकिन मध्यम या छोटे शहर में ये ...Read Moreअपनी - अपनी सत्ता चाहती हैं।मुंबई के बाद जब मैं जबलपुर आया तो कुछ समय बाद ही मुझे एक खालीपन घेरने लगा। हर समय ऐसा लगता था जैसे कोई ताप चढ़ा हुआ है।इस ताप के लिए मैंने कोई थर्मामीटर नहीं लगाया, बल्कि अपनी फ़ाइलों में उन रचनाओं को खंगालना शुरू किया, जो या तो अधूरी छूटी हुई थीं या फिर

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तेरे शहर के मेरे लोग - 4

  • 219

  • 1.1k

( चार )जबलपुर में आकर मुझे ये भी पता चला कि हिंदी फ़िल्मों के मशहूर चरित्र अभिनेता प्रेमनाथ यहीं के हैं। उनकी पत्नी फ़िल्म तारिका बीना राय की एक फ़िल्म "ताजमहल" ने कभी मुझे बहुत प्रभावित किया था।उन दोनों ...Read Moreपुश्तैनी मकान जिसे "प्रेम बीना" बंगला कहा जाता था, यहीं था।प्रेमनाथ ही कभी अपने बहनोई राजकपूर को फ़िल्म "जिस देश में गंगा बहती है" की शूटिंग के लिए यहां लाए थे और नर्मदा नदी के भेड़ाघाट की संगमरमरी चट्टानों पर ही मशहूर गीत "ओ बसंती पवन पागल" की शूटिंग हुई थी।ये जानकारी मिलने के बाद उस जगह पर घूमने का

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तेरे शहर के मेरे लोग - 5

  • 210

  • 957

( पांच )ये छः महीने का समय बहुत उथल - पुथल भरा बीता। मैंने अपने बैंक के केंद्रीय कार्यालय को एक वर्ष की अवैतनिक छुट्टी का आवेदन दिया, किन्तु ये आवेदन अस्वीकार हो गया।मुझे बताया गया कि अवैतनिक छुट्टी ...Read Moreकुछ निर्धारित कारणों के लिए ही दी जाती है, जिनमें ये कारण नहीं आता कि आपको कहीं और नौकरी करनी है। बैंक ऐसा अवकाश केवल तभी देता है जब आप उच्च अध्ययन करना चाहें, जिससे भविष्य में बैंक को भी आपकी योग्यता का कुछ लाभ हो। या फ़िर असाधारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं इस दायरे में आती हैं।लेकिन जीवन में मुश्किल

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तेरे शहर के मेरे लोग - 6

  • 206

  • 998

( छह )मेरे जीवन में आने वाले इस परिवर्तन का असर मेरे मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों पर क्या पड़ने जा रहा था, ये देखना भी दिलचस्प था।मैं अपनी इक्कीस वर्ष की सरकारी नौकरी छोड़ करबैंक से एक शिक्षण संस्थान ...Read Moreजाने वाला था।कुछ लोगों को तो इस बात पर ही गहरा अचंभा था कि ऐसा हुआ ही कैसे, और अब मुझे शिक्षण संस्थान में क्या कार्य और कौन सा पद मिलेगा।कुछ मित्रों को इस बात पर हैरानी थी कि गांव छोड़ कर शहर और शहर छोड़ कर महानगर तो दुनिया जाती है, पर महानगर से छोटे शहर और फ़िर शहर

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तेरे शहर के मेरे लोग - 7

  • 157

  • 955

वीरेंद्र के अपना कला संस्थान खोल लेने के बाद मैंने अपने संस्थान का भी विधिवत पंजीकरण करवा लिया। संस्था के पंजीकरण के कारण मुझे दो - तीन बार जयपुर के समीप स्थित टोंक जिला मुख्यालय पर भी जाने का ...Read Moreमिला।( सात )इस प्रक्रिया में मुझे कुछ नए अनुभव हुए। मैंने देखा कि अधिकांश स्थानों पर सरकारी सेवा में जो लोग थे, वो कई नियमों से अनभिज्ञ तो थे ही, उनमें किसी नए, उन्नति के कार्य को अंजाम देने की पहल करने का जज़्बा भी नहीं था।इसका कारण ये था कि ये जिला प्रदेश के चंद पिछड़े जिलों में शामिल

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तेरे शहर के मेरे लोग - 8

  • 186

  • 1.3k

( आठ )इन्हीं दिनों एक चुनौती मुझे मिली।ज़रूर ये अख़बारों के माध्यम से बनी मेरी छवि को देख कर ही मेरी झोली में अाई होगी।इस चुनौती की बात करूंगा और इसका अंजाम भी आप जानेंगे किन्तु इससे पहले एक ...Read Moreसा किस्सा सुनिए।मेरा नाटक "मेरी ज़िन्दगी लौटा दे" छप चुका था जिसमें एक उच्च जाति के युवक का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वो पिछड़ी कही जाने वाली जाति का मुरीद हो जाता है। इस नाटक पर मुझे महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी का प्रेमचंद पुरस्कार मिलने की सूचना मिली।मैं ये पुरस्कार लेने के लिए महाराष्ट्र गया तो यात्रा में

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तेरे शहर के मेरे लोग - 9

  • 203

  • 1.4k

( नौ )एक दिन मैं अपनी मेज़ पर ताज़ा अाई कुछ पत्रिकाएं पलट रहा था कि मेरे हाथ में इंडिया टुडे का नया अंक आया।इसमें एक पूरे पृष्ठ के विज्ञापन पर मेरी नज़र गई। मैं इसे पढ़ने ...Read Moreदेश में नई बनने वाली एक राजनैतिक पार्टी का था।इस विज्ञापन में बताया गया था कि देश में सभी पुरानी पार्टियां अपने लक्ष्य से भटक गई हैं और अब वे राजनैतिक परिपक्वता तथा अवसरवादिता के नाम पर वास्तविक समस्याओं से बचने लगी हैं।ऐसे में लोगों के बीच सुधार के उपाय स्पष्ट नीतियों के साथ कोई नहीं रख रहा। सब बातों को उलझाए

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तेरे शहर के मेरे लोग - 10

  • 182

  • 1.1k

( दस ) मुझे बताया गया कि पार्टी राज्य में चुनाव लड़ना चाहती है और इसकी यथासंभव तैयारी की जाए।मैंने शाम को दो घंटे का समय पार्टी के कार्यालय में बैठना शुरू किया और शेष समय महासचिव व अन्य ...Read Moreके साथ अलग- अलग नगरों में घूम कर दल के कुछ पदाधिकारी नियुक्त किए। जब संभावित कार्यकर्ता जयपुर आते तो हम तीनों उनका इंटरव्यू लेते और उनकी योग्यता, क्षमता तथा रुचि के अनुसार उन्हें नियुक्त करते।राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थोड़े- थोड़े अंतराल पर राज्य का दौरा करते। अधिकांश यात्राओं में मैं, महासचिव व उपाध्यक्ष उनके साथ होते। हमने उन संभावनाओं की

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तेरे शहर के मेरे लोग - 11

  • 228

  • 1.3k

( ग्यारह )इस नए विश्वविद्यालय का परिसर शहर से कुछ दूर था। हमारे सारे परिजन शहर में ही रहते थे। और इतने सालों बाद अब यहां आकर रहने पर ये तो तय ही था कि सब मिलने - जुलने ...Read Moreहमें बुलाएंगे।अभी तक तो हम जब भी यहां आते थे तो मेहमानों की तरह ही आते थे और उन्हीं में से किसी के घर ठहर कर सबसे मिलना - जुलना करते थे।किन्तु अब हम स्थाई रूप से यहां रहने आ गए थे। तो सभी को कम से कम एक बार तो आना ही था।अतः यही सोच कर हमने विश्वविद्यालय परिसर

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तेरे शहर के मेरे लोग - 12

  • 190

  • 1.2k

( बारह )मेरा जीवन बदल गया था।मैं अकेलेपन की भंवर में फंस कर कई सालों तक शहर दर शहर घूमता रहा था किन्तु अब परिवार के साथ आ जाने के बाद मैं फ़िर से अकेला हो गया था।मेरे छोटे ...Read Moreपरिवार के चार सदस्यों में अब कोई शहर से दूर, कोई देश से दूर, कोई दुनिया से दूर!अब तक मेरे ही परिवार के साथ रहती मेरी मां भी अब मेरे बड़े भाई के घर रहने के लिए चली गई थीं।लेकिन आपको सच बताऊं, अपने अकेलेपन का कई उन बड़े- बूढ़ों की तरह रोना- झींकना मुझे ज़रा भी नहीं सुहाता था

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तेरे शहर के मेरे लोग - 13

  • 175

  • 1.2k

( तेरह )कभी-कभी ऐसा होता है कि अगर हम अपने बारे में सोचना बंद कर दें तो ज़िन्दगी हमारे बारे में सोचने लग जाती है। ज़िन्दगी कोई अहसान नहीं करती हम पर। दरअसल ज़िन्दगी के सफ़र में हमारे सपनों ...Read Moreबीज छिटक कर हमारे इर्द - गिर्द गिरते रहते हैं और जब उन्हें हमारे दुःख की नमी मिलती है तो उग आते हैं। सभी परिजन एक बार उल्लास और उत्साह से इकट्ठे हुए। मेरे बेटे की सगाई यहीं जयपुर में धूमधाम से संपन्न हुई। बस, इस बार फर्क सिर्फ़ इतना सा था कि घर में आने वाले मेहमानों की आवभगत

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तेरे शहर के मेरे लोग - 14

  • 171

  • 1.2k

( चौदह )अचानकदिल का दौरा पड़ने से मेरी पत्नी की मृत्यु विश्वविद्यालय के जिस सभागार में हुई थी उसे विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हीं को, अर्थात अपनी पहली वाइस चांसलर को समर्पित कर दिया और उसका नाम भी उनके नाम ...Read Moreही रख दिया गया। इसके बाद कई वर्ष तक उनकी स्मृति में हर साल एक कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाने लगा जिसमें देश भर से किसी भी एक विशिष्ट व्यक्ति को आमंत्रित करके उनका विशेष व्याख्यान विद्यार्थियों के बीच आयोजित किया जाता। क्योंकि ये "मेमोरियल लेक्चर" होता था अतः ये प्रयास किया जाता कि इस व्याख्यान के लिए उनके

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तेरे शहर के मेरे लोग - 15

  • 189

  • 1.1k

( पंद्रह )कुछसमय पूर्व मैंने अपने पुत्र की सगाई का ज़िक्र किया था। तो आपको अपनी बहू, यानी उसकी होने वाली पत्नी के बारे में भी बता दूं, कि वो कौन थी! मेरे एक पुराने मित्र थे। उनसे कई ...Read Moreपुरानी दोस्ती थी। उनकी और मेरी दोस्ती का सबसे बड़ा आधार ये था कि वो भी मेरी तरह ख़ूब घूमते रहे थे। घूमना हमारा शौक़ नहीं बल्कि व्यवसाय जैसा ही रहा था।एक बड़ा फ़र्क ये था कि मैं जिस तरह ज़मीन पर घूमा था वो पानी पर घूमते रहे थे। वे मर्चेंट नेवी में रहे थे और उनके जलपोत किनारे

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तेरे शहर के मेरे लोग - 16

  • 135

  • 984

( सोलह )सोशलमीडिया पर अब मेरी सक्रियता कुछ बढ़ने लगी थी। दुनिया के मेले में कई लोग आपकी निगाहों के सामने आते थे, आपके दायरे में आते थे, आपके सोच में भी आ जाते थे। कुछ वैसे ही "हाय ...Read Moreहैलो" कहते हुए आगे बढ़ जाते थे, कुछ ठहर कर आपसे बात भी करते थे और कुछ आने वाले दिनों में संभावना भी जगाते थे। जब मैंने अपना नया उपन्यास लिखना शुरू किया तो आरंभ में पहले इसका नाम "रजतपट" था। किन्तु पूरा होते- होते इसका नाम जल तू जलाल तू हो गया। वैसे भी, मैं उपन्यास लिखते समय दो-

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तेरे शहर के मेरे लोग - 17

  • 189

  • 1k

( सत्रह )हैदराबादमें एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। मैं विमान यात्रा से वहां पहुंचा। किन्तु जब विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस जा रहा था तभी मेरे मेज़बान के पास आए एक फ़ोन के आधार पर उन्होंने मुझे बताया कि ...Read Moreउपन्यास जल तू जलाल तू का तेलुगु अनुवाद वहां की जिन प्रोफ़ेसर महिला ने किया है उन्हीं का परिवार मुझे गेस्ट हाउस के स्थान पर उनके आवास में ही ठहराना चाहता है। ये दौरा बहुत सुखद तथा गरिमापूर्ण रहा। अगले दिन मैंने वहां की एक लोकप्रिय पत्रिका और मेरी पुस्तक के प्रकाशक का कार्यालय भी देखा। विमोचन के पश्चात मैंने

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तेरे शहर के मेरे लोग - 18

  • 138

  • 1.2k

( 18 )मैंने देखा था कि जब लोग नौकरी से रिटायर होते हैं तो इस अवसर को किसी जश्न की तरह मनाते हैं। ये उनकी ज़िंदगी के जीविकोपार्जन के सफ़लता पूर्वक संपन्न हो जाने का मौक़ा होता है। एक ...Read Moreमुकाम जिसके बाद ज़िन्दगी का ढलना शुरू हो जाए। जैसे शाम का सूरज। इस मौक़े पर वो बताते हैं कि वे ऐसे थे, वैसे थे, उनमें ये खूबी थी, वो अच्छाई थी...बस, और कुछ नहीं। ये ज़िक्र कोई नहीं करता कि उनमें क्या कमी थी। जो हुआ, जैसे हुआ, जैसा हुआ उसके लिए एक दूसरे से क्षमा मांगी जाती है,

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तेरे शहर के मेरे लोग - 19 - अंतिम भाग

  • 150

  • 1.3k

( उन्नीस - अंतिम भाग) मेरे पिता मेरे साथ बस मेरी पच्चीस वर्ष तक की आयु तक रहे, फ़िर दुनिया छोड़ गए। मेरी मां मेरे साथ मेरी तिरेसठ वर्ष की उम्र तक रहीं। वो तिरानबे साल की उम्र में ...Read Moreहुईं। अब मेरी उलझन ये थी कि चालीस साल पहले चले गए पिता को याद करने का जरिया क्या हो? उन्हें कैसे याद करूं। वैसे तो हम जन्म - जन्मांतर पहले हुए पूर्वजों को भी उनकी तस्वीर रख कर पूज लेते हैं। ईश्वर तो राम जाने कितना ही पुराना है, फ़िर भी उसकी मूर्ति रख कर पूजा ही जाता है।

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