जय हो बकरी माई

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(१) जय हो बकरी माई बकरी को प्रतीक बनाकर मानव के छद्म व्यक्तित्व और बाह्यआडम्बर को परिभाषित करती हुई एक हास्य व्ययांगात्म्क कविता। सच कहता हूँ बात बराबर,सुन ले मेरे भाई,तुझसे लाख टके है बेहतर तेरी बकरी माई।तू मेरा दिमाग चबाये, और बकरी ये पत्ता,तू बातों से मुझे पकाए बात बुरी पर सच्चा। घर की बकरी से घर का भोजन चलता है सारा,पर बकरी का दाना पानी घास पात हीं चारा।जो तेरे सर हाथ फिराए सिंग नहीं पर मारे सिंग,बकरी तो दे दूध बेचारी क्या रात हो क्या हो दिन। तेरी शादी का क्या भैया पैसे का