मानवता के डगर पे

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प्यारे तुम मुझे भी अपना लो ।गुमराह हूं कोई राह बता दो।युं ना छोडो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे।मुझे भी साथले चलो मानवताकी डगर पे।।वहां बडे सतवादी है।सत्य -अहिंसाकेपुजारी हैं।।वे रावण के अत्याचार को मिटा देते हैं।हो गर हाहाकार तो सिमटा देते है।।इस पथ मे कोई जंजीर नही जो बांधकर जकड सके।पथ मे कोई विध्न नही जो रोककर अ क ड सके।।है ऐ मानवता की डगर निराली।जीत ले जो प्रेम वही खिलाडी।।यहां मजहब न भेदभाव,सर्व धर्म समभाव से जिया ...है।वक्त आए तो