बात न करो जात की - 1

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कई वर्षों से न जाने कितना कुछ पढ़ी थी!लेकिन उसमें ज्यादातर राजा रानी के किस्से थे,पढ़ने में वह बहुत अच्छे लगते थे,मगर लिखना मैं कुछ और चाहती थी!उस तरह के किस्से फिर से लिखकर क्या होगा ठीक है उनसे दिल बहला होता है! मगर हम आखिर कब तक इसी तरह के दिल बहलाव कहानियां पढेंगे और लिखेंगे!इस तरह तो इतिहास के पन्नों से नाम ही मिट जाएंगे!जरा अपने समाज के हालत भी तो देखो कैसे मुर्दों की नींद सो रहा है!ऐसे सामाजिक को दिल बहलाने की जरूरत है या झकझोर कर उन्हें जगाने की?न जाने कब से सो रहे हैं