वह नहीं आया

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मैं बहुत परेशान थी,जी चाहता था कि खुद को खत्म कर लूँ ।बात सिर्फ इतनी थी कि मेरा प्रेमी वादे के अनुसार मिलने नहीं आया था बस। पर मैं उसकी वादाखिलाफी को बेवफाई समझ हताश हो रही थी। मेरी हताशा का कारण उसका पलायनवादी स्वभाव था और शायद मेरा अविश्वास भी,जो इस शहरी संस्कृति की देन है। अपने को आत्मघात के विचार से मुक्त करने के लिए मैंने सोचा, कि गाँव चलते हैं, मरने से पूर्व सबसे मिल तो लें। शहरी व्यवस्था ने मुझे वैसे भी गाँव से काटकर रख दिया था। कई वर्षों के बाद मै वहाँ जा रही