आस्था

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रजिया बेगम सिलाई मशीन पर बैठी खयालों में इतनी डूबी थी कि उन्हें बाहर दरवाजे पर हुई दस्तक सुनाई नही दी। जोर से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ पर उनका ध्यान टूटा।"अरे दुआ बिटिया! ! कब आयी ससुराल से, माशाअल्लाह बहुत ही प्यारी लग रही है मेरी बच्ची। आओ-आओ अंदर आओ।" उसे अंदर बुलाते हुए रजिया जल्दी-जल्दी पलंग की चादर ठीक करने लगी। "बस अम्मी रात को ही आयी हूं, और सुबह आपसे मिलने चली आयी।""ससुराल में सब ठीक हैं, और तेरे शौहर कैसे हैं, खयाल रखते है तेरा।" दुआ की शर्मीली मुस्कान देखकर