गवाक्ष - 26

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गवाक्ष 26 समय-यंत्र की रेती नीचे पहुँच चुकी थी। देखो!मेरा तो सारा खेल समाप्त हो चुका है, मैं अब निश्चिन्त हूँ, दंड तो मिलेगा ही मुझे। फिर मैं कुछ सुखद यादें समेटकर क्यों न ले जाऊँ ? वह अपनी पूर्ण योग्यता से सत्याक्षरा को फुसलाने की चेष्टा में संलग्न हो गया। जिस प्रकार 'सेल्समैन'अपने 'प्रोडक्ट' को बेचने के लिए कोई न कोई मार्ग तलाशते रहते हैं, दूत भी उस गर्भवती को फुसलाने की चेष्टा जी-जान से कर रहा था। इस संसार में दुःख और परेशानियों के अतिरिक्त और है क्या? सच कहना!क्या इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति मोक्ष की इच्छा, आकांक्षा नहीं करता?और तुम हो कि एक और प्राणी को