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Gavaksh by Pranava Bharti | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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गवाक्ष by Pranava Bharti in Hindi
Novels

गवाक्ष - Novels

by Pranava Bharti Matrubharti Verified in Hindi Social Stories

(227)
  • 9.7k

  • 31.8k

  • 5

गवाक्ष बसंत पंचमी दिनांक-12 2 2016 (नमस्कार मित्रो ! यह उपन्यास ‘गवाक्ष’ एक फ़िक्शन है जिसे फ़िल्म के लिए तैयार किया जा रहा था किन्तु इसके प्रेरणास्त्रोत 'स्व. इंद्र स्वरूप माथुर' का स्वर्गवास हो गया प्रोफ़ेसर माथुर ...Read Moreडिज़ाइन संस्थान'NID'अहमदाबाद में एनिमेशनविभाग के 'हैड' थे वर्षों पूर्व मैंने उनके साथ कई एनिमेशनकी फ़िल्मों की पटकथाएं लिखी थी बाद में वो हैदराबाद 'एनिमेशनइंस्टिट्यूट 'के डायरेक्टर होकर चले गए थे एक बहुत बड़ीदुर्घटना के कारण उन्हें वापिस अहमदाबाद लौटना पड़ा यहाँ पर उन्होंने 'सिटी प्लसफ़िल्म व टेलीविज़न इंस्टिट्यूट' को खड़ा किया जिसमें मैं भी विज़िटिंग फ़ैकल्टी रही व बी.ए के

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गवाक्ष - 1

  • 816

  • 1.7k

गवाक्ष बसंत पंचमी दिनांक-12 2 2016 (नमस्कार मित्रो ! यह उपन्यास ‘गवाक्ष’ एक फ़िक्शन है जिसे फ़िल्म के लिए तैयार किया जा रहा था किन्तु इसके प्रेरणास्त्रोत 'स्व. इंद्र स्वरूप माथुर' का स्वर्गवास हो गया प्रोफ़ेसर माथुर ...Read Moreडिज़ाइन संस्थान'NID'अहमदाबाद में एनिमेशनविभाग के 'हैड' थे वर्षों पूर्व मैंने उनके साथ कई एनिमेशनकी फ़िल्मों की पटकथाएं लिखी थी बाद में वो हैदराबाद 'एनिमेशनइंस्टिट्यूट 'के डायरेक्टर होकर चले गए थे एक बहुत बड़ीदुर्घटना के कारण उन्हें वापिस अहमदाबाद लौटना पड़ा यहाँ पर उन्होंने 'सिटी प्लसफ़िल्म व टेलीविज़न इंस्टिट्यूट' को खड़ा किया जिसमें मैं भी विज़िटिंग फ़ैकल्टी रही व बी.ए के

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गवाक्ष - 2

  • 542

  • 983

गवाक्ष 2 मंत्री जी के मुख से मृत्यु की पुकार सुनकरदूत प्रसन्न हो उठा । ओह ! कोई तो है जो उसे पुकार रहाहै । 'अब उसका कार्य आसान हो जाएगा'वह उत्साहित हो गया-- महोदय ! मैं आपको ही ...Read Moreआया हूँ । अब तकमंत्री जी किसी स्वप्नावस्था में थे, दूतकी वाणी ने उनके नेत्र विस्फ़ारित कर दिए, वे चौकन्ने हो उठे। अपनीवस्त्रहीन देह संभालते हुए वे बोले -- मेरे अंतरंग कक्ष में किसीको आने की आज्ञा नहीं है, तुम कैसे चले आएऔर दिखाई क्यों नहीं दे रहे हो?क्या उस पर्दे के पीछे छिपे हो?वे सकपका से गए । इस

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गवाक्ष - 3

  • 454

  • 925

गवाक्ष 3 == मंत्री जी के आदेशानुसार वह गुसलखाने से निकल आया था और उनके सुन्दर, व्यवस्थित 'बैड रूम' का जायज़ा लेने लगा था । मंत्री जी के बड़े से सुन्दर, सुरुचिपूर्णकक्ष में कई तस्वीरें थीं, जिनमें कुछदीवार पर ...Read Moreकुछ पलंग के दोनों ओर पलंग से जुड़ी हुई छोटी-छोटी साफ़-सुथरी सुन्दरमेज़ों पर थीं । कॉस्मॉस ने ध्यान से देखा एक सौम्यस्त्री की तस्वीर कई स्थानोंपर थी। किसी में वह मंत्री जी केसाथ थी, किसी में पूरेपरिवार के साथ, किसी में एक प्रौढ़ा स्त्री के साथ और उसीसौम्य, सरल दिखने वाली स्त्री की एक बड़ी सी तस्वीर ठीक मंत्री जी

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गवाक्ष - 4

  • 449

  • 893

गवाक्ष 4=== मंत्री जी स्वयं इस लावण्यमय दूत से वार्तालाप करना चाहते थे। वे भूल जाना चाहते थे कि बाहर कितने व्यक्ति उनकीप्रतीक्षा कर हैं, वे यह भी याद नहीं रखना चाहते थे कि'कॉस्मॉस'नामक यह प्राणी अथवा जो भी ...Read Moreसंरक्षण के उपरान्त किस प्रकार उन तक पहुंचा?वे बस उससे वार्तालाप करना चाहते थे, उसकी कहानी में उनकी रूचि बढ़तीजा रही थी। "अपने बारे में विस्तार से बताओ----"मंत्री जी ने अपना समस्त ध्यान उसकी ओर केंद्रित कर दिया। "जी, जैसा मैंने बताया मैं कॉस्मॉस हूँ, गवाक्ष से आया हूँ । धरती पर मुझे'मृत्यु-दूत'माना जाताहै। हमारा निवास'गवाक्ष'में है, आप उसे स्वर्ग,

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गवाक्ष - 5

  • 365

  • 1.1k

गवाक्ष 5== सत्यव्रत ने आँखें मूंदकरएक लंबी साँस ली। वे समझ नहीं पा रहे थे इस अन्यलोक के प्राणी से वे क्या और कैसे अपने बारे में बात करें? "हर वह धातु सोना नहीं होती जो चमकती हुई दिखाई ...Read Moreहै । " उन्होंने मुरझाए शब्दों में कहा । "अर्थात ---??"उसकी बुद्धि में कुछ नहीं आया अत:उसने उनसे पूछा; "वैसेआप इतने व्यथित क्योंहैं?क्या इसलिए कि मैं आपको ले जाने आया हूँ? " "नहीं दूत, मैं इस तथ्यसे परिचित हूँ कि समय पूर्ण होने पर सबको वापिस अपने वास्तविक निवास पर लौटना होता है । " "क्या मैं अपेक्षाकरूँ आप मुझे

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गवाक्ष - 6

  • 331

  • 817

गवाक्ष 6= वे बात करते-करतेजैसे बार-बार अपने वर्तमान से भूत में प्रवेश कर जाते थे। अपने क्षेत्र में प्रवेशकर उन्होंने राजनीति की वास्तविकता को समझा था । समाज के लिए कुछ व्यवहारिक कार्य करने का उनका उत्साह इसक्षेत्र में ...Read Moreकरने के पश्चात कुछ ही द

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गवाक्ष - 7

  • 295

  • 793

गवाक्ष 7== माता-पिता की एकमात्र संतान कानामसत्यव्रत इसलिए रखा गया था कि एकसदाचारी, सरल किन्तु ऐश्वर्यपूर्णपरिवार में जिस बाल-पुष्पका जन्म हुआ, वह न जाने कितनी मिन्नतों, प्रार्थनाओं के पश्चात उस घर के आँगन में खिला था । जीवन में ...Read Moreभी खुशियाँ, सुविधाएं हो सकती हैं, वे सब इस बालक को प्राप्त हुई। बालपन पर जिस वस्तुपर भी वह हाथ रख देता, वह कहीं से भी उसके पास पहुँचा दी जाती । परिणाम वही हुआ जोआवश्यकता सेअधिक लाड़-दुलार पाने वाले बच्चों का होता है। सत्यव्रत कभी अपने सत्य के व्रत में नहीं रह सका। प्रत्येक वस्तु की माँग पहले उसकी

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गवाक्ष - 8

  • 287

  • 827

गवाक्ष 8= एक दिन सैवीने अपने कॉलेज की ज़हीन छात्रा स्वातिको अपनी ' फ़ैक्ट्री'के द्वार पर ऑटोरिक्शा से उतरतेदेखा और वह बैचैन हो उठा । अपनेकॉलेज केदिनों से वहउसेपसंद करने लगा था । वह एक मध्यवर्गीय स्वाभिमानी छात्रा थी ...Read Moreउसने पैसे वाले उस बिगड़ैलरईस की ओर कभी ध्याननहीं दिया था। कई बारप्रयास करने पर भी वह उसके हाथ न लगी । उस लड़की में अवश्य ही ऐसा कुछ था जिसे वहकई वर्ष पश्चात भी भुला नहीं पाया था। वह अपने कार्यालयमें किसी से उसके बारे में कुछ पूछ नहींसकता था, यह उस जैसे अकड़ू रईसके लिए असम्मानजनक वअशोभनीय था

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गवाक्ष - 9

  • 324

  • 777

गवाक्ष 9= प्रथम मिलन की रात्रि में स्वाति ने अपने संस्कारों के तहत पति के पैर छुए; "यह क्या बकवासबाज़ीहै ----यह मत समझना इन दिखावटी बातों से मैं तुम्हारे प्रभाव में आ जाऊँगा ---" और वह झल्लाकर कमरे से ...Read Moreनिकल गया । स्वाति चुपचाप उसे देखती रही थी । वह पुरातन अंधविश्वासीपरंपराओं से जकड़ी हुई नहीं थी । सब कुछ जानते, समझते, बूझते उसने सत्यव्रतजैसे लड़केको पति के रूप में स्वीकार किया था । विवाह उसके लिए चुनौती था तो पति को सदमार्ग पर लाना, माँ वपुत्र के बीच सेतु बनना, सत्यप्रिय के ह्रदयमें माँ के प्रति आदर व

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गवाक्ष - 10

  • 299

  • 833

गवाक्ष 10 प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी चांडाल-चौकड़ी अपनी मस्ती में थी कि एक हादसे ने सत्यव्रत को झकझोर दिया, उसे जीवन कीगति ने पाठ पढ़ा दिया। एक रात्रि जब वह मित्रों के साथ खा-पीकर अपनी विदेशी ...Read Moreमेंघूमने निकला तब एक भयंकर दुर्घटना घटी। एक भैंसउसकी कार केसामने आ गई, भैंस केमालिक ने कई लठैतों केसाथ मिलकरउसे मारने के लिए घेर लिया। सारे मित्र दुर्घटना-स्थल से भाग निकले, वह कठिन परिस्थिति में फँस गया। उसको बुरी प्रकार पीटा गया, जेब से सारे पैसे निकाल लिए गए, हीरे की घड़ी, अँगूठियाँ सब छीन ली गईं, उसकीएक टाँग बुरी प्रकारकुचल

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गवाक्ष - 11

  • 287

  • 794

गवाक्ष 11=== पॉंच-पॉंच वर्ष के अंतर में सत्यव्रत व स्वाति की फुलवारी में क्रमश:तीन पुष्प खिले। दो बड़े बेटे व अंत की एक बिटिया। बस--- यहीं फिर से सत्यव्रत के जीवन में अन्धकार छाने लगा। सत्यव्रत व स्वाति दोनों ...Read Moreबिटिया की ललक से जुड़े थे । इस दुनियासेविदा लेते समय स्वाति व सत्यव्रत में कुछ पलों का वार्तालाप हुआ था । स्वाति समझ रही थी कि वह जा रही है। नन्ही सीबिटिया के गाल पर ममता का चुंबन लेकर स्वाति ने उसेसत्यव्रत की गोदी में दे दिया। सत्यव्रत ने बिटिया के माथे कोस्नेह से चूम लिया और उसे पालने

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गवाक्ष - 12

  • 259

  • 769

गवाक्ष 12= संभवत: कॉस्मॉसमंत्री जी को उसविषय से हटाना चाहता था जो उन्हें पीड़ित कर रहा था; " क्या राजनीति बहुत अच्छी चीज़ है जोआप इसमें आए?" दूत नेअपनी बुद्धि के अनुसार विषय-परिवर्तन करने चेष्टा की । "राजनीति कोई ...Read Moreनहीं है, यह एक व्यवस्था है । किसी भी कार्य-प्रणाली के संचालन केलिए एकव्यवस्था की आवश्यकता होती है। समाज को चलानेके लिए एक व्यवस्था तैयार की गई, यही व्यवस्थाराजनीति हैयानि--'राज करने की नीति'! वास्तव में यह राज नहीं 'सेवा-नीति' होनी चाहिए। इसमें सही सोच, वचन-बद्धता, एकाग्रता, सही मार्गदर्शन होना चाहिए और इसमें ऐसे व्यक्तियों को कार्यरत होना चाहिए जोअपने विचारशुद्ध

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गवाक्ष - 13

  • 220

  • 757

गवाक्ष 13== नीलेअंबर सेझाँकतींअरुणिमाकी छनकर आती लकीरें, वातावरण मेंघुँघरुओं की मद्धम झँकार, कोयलकी कूक सेमधुर स्वर---दूत को इस सबने आकर्षित किया, स्वत: ही उसके पाँव उस मधुर स्वर की ओर चलने के लिए उदृत हो गए। उसकेलिए अदृश्य रूप ...Read Moreरहनाश्रेयस्कर था । अब उसने सोच लिया था जहाँ उसे जाना होगा अदृश्यरूप में हीजाएगा। भीतर जाकर तो उसे अपना परिचय देना ही होताहै। न जाने क्योंउसे लग रहा था कि सब स्थानों पर भटककर उसे अंत में मंत्री जी के पास ही आना होगा । अत:उसने अपने अदृश्य यान को उसी वृक्ष पर टिकाए रखा और स्वर-लहरी की ओरचल

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गवाक्ष - 14

  • 239

  • 755

गवाक्ष 14 निधी के चेहरे पर प्रश्न पसरे हुए थे, ह्रदय की धड़कन तीव्र होती जा रही थी। कुछेक पलों पूर्व वह अपनी साधना में लीन थी और अब---एक उफ़नतीसी लहर उसे भीतर से असहज कर रहीथी । परिस्थिति ...Read Moreव्यक्ति के मन और तन पर कितना अद्भुत रूप से पड़ता है ! वह खीज भी रही थी, अपना उत्तर प्राप्त करने केलिए उद्वेलित भी थी और उसके समक्ष प्रस्तुत ‘रूपसी बाला’ केवल मंद -मंदमुस्कुराए जा रही थी । निधीकी साधना का समयअभी शेष था और वह नजाने किसउलझन मेंउलझ गई थी। अपना नाम बताओ और अपने यहाँ आने का

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गवाक्ष - 15

  • 236

  • 731

गवाक्ष 15= “वृक्षों के पत्तों से लहलहाती सरसराहट, खुले आकाश में बादलों का इधर से उधरतैरना, पशुओं के रंभाने की आवाज़ें इन सबमें तुम्हें संगीत सुनाई देरहा है?""कुछ आवाज़ें तो सुनाई देती हैं ---"कॉस्मॉस ने उत्तर दियायह सब तो ...Read Moreसदा से सुनता ही आया है, इस

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गवाक्ष - 16

  • 206

  • 629

गवाक्ष 16== "अच्छा !संगीत व नृत्य-कलाके पीछे भीकोई कहानी है क्या?"कॉस्मॉस अब निश्चिन्त हो गया था, उसे सत्यनिधि से वार्तालाप करने में आनंद आ रहा था उसे । " हाँ, है तो परन्तु इसमें सत्य कितना है ? यह ...Read Moreकह सकती। "" मुझे उससे कोई अंतर नहीं पड़ता । बस आप मुझे कहानी सुनाइए। " वह बच्चों की भाँति मचलने लगा। उसे देखकरसत्यनिधि के मुख पर कोमल मुस्कुराहट पसर गई । " सुनो --युगों में सदा परिवर्तन होता रहा है यानि हर युग के बाद परिवर्तन होता है, परिवर्तन केदौरानकुछ बातें पुरानी रह जाती हैं तो कुछ नवीन जुड़जाती

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गवाक्ष - 17

  • 179

  • 728

गवाक्ष 17== निधी को वास्तव में दुःख था, बेचारा ! इतना कठिन कार्य संभालता है फिर भीउसकी स्थिति धरती के किसी निम्नवर्गीय प्राणी से अधिक अच्छी नहीं थी । "इस भौतिक संसार में इस कला का यह परिचय केवल ...Read Moreचरण ही था। अभी इसमें बहुत कुछ संलग्न करने की आवश्यकता थी, पारंपरिकशैक्षणिकता का सम्मिश्रण होना आवश्यक था। शास्त्रीय संगीत केवल मनोरंजन की कला नहीं है, यह नैतिकता, आचार व आध्यात्मिकता कासमन्वय हैअत:इसमें कुछ विशेष योग्यताओं का होना अपेक्षितहै। ""तो इस कला का शिक्षणकैसेलिया जा सकताहै?""इस शैक्षणिक कला में गुरु-शिष्य परंपरा है तथा इसकेमूल सिद्धांत गुरु, विनय एवं साधना हैं।

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गवाक्ष - 18

  • 201

  • 810

गवाक्ष 18== "आपको भी संगीत व नृत्य सीखने की आज्ञा नहीं थी, फिर आप कैसे इस कला में प्रवीण होगईं?आप क्या छिपकर इस कला का अभ्यास करती हैं?""तुम बहुत चंचल हो, चुप नहीं रह सकते न ?बीच-बीच में टपकते ...Read Moreतो कुछ नहीं बताऊँगी। "" नहीं, अब चुप रहूंगा, लेकिन जब बात समझ में न आए तो आपको बताना चाहिए न --- उसने एक बालक की भाँति मुह फुलायाऔर अपने होठों पर उँगली रखकर बैठ गया । सत्यनिधि नेमुस्कुराकर अपनी बात आगे बढ़ाई। पहले समय में कला सीखने की आज्ञा तो मिलती नहीं थी, गुरु भी अपनी कला को गूढ़

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गवाक्ष - 19

  • 201

  • 813

गवाक्ष 19== कॉस्मॉस के इस बचपने से सत्यनिधि के चेहरे पर फिर मुस्कुराहट पसरगई। उसे प्रत्येक बात में उत्सुकता दिखाने वाला, यह बालक सा लगने वाला कॉस्मॉस बहुत प्यारा सा लगने लगा था। अपनी बातों को उसके साथ बाँटना ...Read Moreसुख दे रहा था। 'क्या दूसरे ग्रह के ऐसे वासी जो धरती के लोगों के प्राण हरकर ले जातेहों, इतने प्यारे हो सकतेहै?'सत्यनिधि सोच रही थी |"सफ़लता दर्पण की भाँतिहै, जैसेदर्पण टुकड़ों में बँटजानेके पश्चात भी अपनेप्रतिबिम्बनकी योग्यतानहीं छोड़ता उसी प्रकार सफ़लताइतनी आसानी से प्राप्त नहीं होती और जब हो जाती है तब जीवन में स्थाई स्थान बना लेती है

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गवाक्ष - 20

  • 204

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गवाक्ष 20== रेकॉर्डर का बटन दबा दिया गया, सत्यनिधि ने नटराज व शारदा माँ की प्रतिमाओं के समक्षवंदन किया और कॉस्मॉस की ओर देखकरमुस्कुरा दी जो उठकर उसके पास आकर उसके जैसे ही प्रणाम करने की चेष्टा कर रहाथा। ...Read Moreमें संगीत की स्वर-लहरी बिखरने लगी और नृत्यांगना के कदम धीमे-धीमे उठते हुए लयबद्ध होने लगे। कुछेक पलों में वह संगीत के लय-ताल में खोने लगी--'तिगदा दिगदिग थेई'के साथ उसने चक्कर काटने शुरू कर दिए । कॉस्मॉस भीलट्टू की भाँति घूमने लगा था। कितना आनंद आ रहा था!वह सब भूलताजा रहा था, कौन है?कहाँ है?कहाँ से आया है?'थेई'के साथ वह

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गवाक्ष - 21

  • 180

  • 822

गवाक्ष 21== निधी को शर्मिंदगी हुई, कैसी बचकानी बातें कर रही है! उसके साथ बैठा हुआ मृत्यु-दूत है, कॉस्मॉस! उसका कार्य-क्षेत्रकिसी एक स्थान परकैसे हो सकता है? उसनेअपने दोनों कान पकड़ लिए। दोनों पुराने मित्रों की भाँतिखिलखिलाकर हँस ...Read Moreनिधी ने उसे हाथ के इशारे से आगे बढ़ने कोकहा, कॉस्मॉस को उसका इशारा समझने में एक पललगा । "अरे भई ! आगे बढ़ो न ---मेरा मतलब है आगे सुनाओ न फिर क्या हुआ?""इस भाषा मेंबोलो न ---"कॉस्मॉस ने बच्चे की भाँति ठुनककर कहा । “पहले बताओ तुम इतनी अच्छी भाषा कैसे बोल लेते हो?""बहुत आसान है, जहाँ जाता हूँ,

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गवाक्ष - 22

  • 180

  • 780

गवाक्ष 22== उनका एकांत का समय पूरा हो चुका था, बाहर दर्शन की भीड़ जमा हो चुकी थी, द्वार पर धीमे-धीमे खटखटाहट शुरू हो चुकी थी। उन्होंने मेरीओर याचना भरी दृष्टि सेदेखा, मेरी योजना वहाँ भी असफ़ल हो चुकी ...Read Moreमैंने उनकेदेशमें उनके घर जाने का निर्णय लिया । " उनकी पत्नी को ले जाने काविचार आया अथवा उनके पुत्रको”निधी की एकाग्रता भंग हुई । "नहीं, किसीको नहीं, बस उस व्यक्ति के परिवारसे मिलने का विचारआया जो अपने परिवार केप्रति न तोकृतज्ञ था, न ही ईमानदार !यहाँ नाटकबाज़ी कर रहा था । बहुत पीड़ा होती है ऐसे लोगों को देखकर

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गवाक्ष - 23

  • 165

  • 702

गवाक्ष 23== कॉस्मॉस पीड़ा से भर उठा था किन्तुअब उसे अपना सफ़र आगे बढ़ाना था। सत्यनिधि भीतर से भीग उठी, उसने आगे बढ़कर कॉस्मॉस को आलिंगन में लेलिया, उसके नेत्रों में अश्रुकण टिमटिमा रहे थे। कॉस्मॉस के लिए यह ...Read Moreसंवेदनपूर्ण अनुभव था। कई पलों तक वह एक कोमलसीसंवेदना से ओत-प्रोत निधि से चिपका रहा । यमराज के मानस-पुत्रों में इस प्रकार की संवेदना !कुछ पल पश्चात वह निधि से अलग हुआ औरहाथ हिलाते हुएपीछे मुड़-मुड़कर देखते हुए उसकी दृष्टि से ओझल हो गया । कॉस्मॉस के मन में एक अजीब प्रकार का आलोड़न चल रहाथा। मन में कहीं कुछ

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गवाक्ष - 24

  • 171

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गवाक्ष 24== सत्यनिधि के पास से लौटकरकॉस्मॉस कुछ अनमना सा हो गया, संवेदनाओं के ज्वारबढ़ते ही जा रहे थे। उसके संवेदनशील मनमें सागर की उत्तंग लहरों जैसी संवेदनाएंआलोड़ित हो रहीथीं। जानने और समझने के बीच पृथ्वी-वासियों केइस वृत्ताकार मकड़जाल ...Read Moreवह फँसता ही जा रहा था। गवाक्ष में जब कभी पृथ्वी एवं धरती के निवासियों की चर्चाएं होतीं, पृथ्वी का चित्र कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता मानोपृथ्वी कारागार है और यदि कोई दूत अपनी समय-सीमा मेंअपना कार्य पूर्णनहीं कर पाता तब उसको एक वर्ष तक पृथ्वीपर रहने का दंड दिया जा सकताहै। इस समय अपने यान के समीप वृक्ष

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गवाक्ष - 25

  • 186

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गवाक्ष 25== अचानक कॉस्मॉस की दृष्टि एक श्वेत रंग के चार-पहिया वाहन पर पड़ी, जिसने उसे आकर्षित किया और वह उस वाहन के पीछे अपने अदृश्य रूप में चल दिया। एक लंबे-चौड़े अहाते में जाकर वहगाड़ी रुकी और दो ...Read Moreवस्त्रधारी मनुष्यउस में सेएक महिला कोनिकालकर एक लंबी सी चार पहियों वाली लंबी खुली हुईगाड़ी जैसी चीज़ परलिटाकरले जानेलगे । " लो स्ट्रेचर आ गया, हम अस्पताल पहुँच गए हैं अक्षरा " कॉस्मॉस के कान खुले, दो नवीन शब्द थे 'स्ट्रेचर'जिसे महिला के साथ वाली उसीकी हमउम्र महिला के मुख से सुना था । दूसरा अस्पताल ! जिसके भीतर उस

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गवाक्ष - 26

  • 171

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गवाक्ष 26 समय-यंत्र कीरेती नीचे पहुँच चुकी थी। देखो!मेरा तो सारा खेल समाप्त हो चुका है, मैंअब निश्चिन्त हूँ, दंड तो मिलेगा ही मुझे। फिर मैं कुछ सुखद यादें समेटकर क्यों न ले जाऊँ? ...Read Moreअपनी पूर्ण योग्यता सेसत्याक्षराको फुसलाने की चेष्टा में संलग्न हो गया। जिस प्रकार'सेल्समैन'अपने'प्रोडक्ट'कोबेचने के लिए कोई न कोई मार्ग तलाशतेरहते हैं, दूत भी उस गर्भवती को फुसलाने की चेष्टा जी-जान से कर रहा था। इस संसार में दुःख और परेशानियों के अतिरिक्त और है क्या?सच कहना!क्या इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति मोक्ष की इच्छा, आकांक्षा नहीं करता?और तुम हो कि एक और प्राणी को

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गवाक्ष - 27

  • 141

  • 531

गवाक्ष 27== यह निरीहकॉस्मॉस जहाँ भी जाता, वहीं से अपने भीतर एक नई संवेदना भरकर ले आता। भयभीत भी था किन्तुबेबस भी। उसकी बुद्धि में कुछ भी नहीं आरहा था, वह क्या करे? मंत्री जी ने उसे अपने प्रोफ़ेसर ...Read Moreकार्य में विघ्न न डालने की हिदायत दी थी जिसका उसने पालन करने का प्रयास भी किया था परन्तु उसके भीतर उगती संवेदना ने उसे एक गर्भवती स्त्री की मनोदशा व शारीरिक पीड़ा से आत्मग्लानि से भर दिया था । "समर्पण ---अपनेआपको झुका देना और माँ तो सदा बच्चे के समक्ष झुकती ही आई है। "कॉस्मॉस के लिए यह एक

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गवाक्ष - 28

  • 156

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गवाक्ष 28== अट्ठारह वर्ष की होने पर भव्य समारोह में धूमधाम से सत्याक्षरा का जन्मदिन मनातेहुए पिता सत्यालंकारकोदिल का भयंकर दौरा पड़ा और परिवार में दुःख और मायूसी के बादलों ने आनंद वप्रसन्नताको अपनी काली चादर के नीचे ढ़क ...Read More। इतनी शीघ्र बदलाव हो सकता है क्या?जीवन की प्रसन्नताएँ इतनीक्षणभृंगुर! लगता, दिन के उजियारे काल -रात्रिमें परिवर्तित हो गए। कुछ ही समय में जीवन की वास्तविकता स्वीकार ली गई, थमा हुआ साजीवन पुन:गति पकड़ने की चेष्टा में संलग्न हो गया। सत्यनिष्ठ तब तक अपनी शिक्षा पूर्ण करके एक सम्मानीय पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था। वह बहन तथा माँ

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गवाक्ष - 29

  • 135

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गवाक्ष 29== स्वरा बंगाल की निवासी थी औरबंबईमें कार्यरत थी । सत्यनिष्ठ के संस्कार व व्यवहारों के प्रति आकर्षित हो वह उससे प्रेम करने लगी थी । संगीत की सुरीली धुन सी स्वरा के कंठ मेंलोच, स्निग्धता वईमानदारी थी ...Read Moreवहसत्यनिष्ठ के संवेदनशीलव पारदर्शी व्यक्तित्वकेप्रति आकर्षितहुई थी। स्वरा केमन कीक्यारी में संदल महक रहा था, यह महक उसे व सत्यनिष्ठ को ऐसे भिगो रही थी जैसे कोई उड़ता कबूतर ऊपर से बरसात के सुगंध भरे पानी में भीगकर अपनेपँख फड़फड़ाता निकल जाए और पता भी न चले कि कब ? कैसे ? मन भीग उठा। वह सुसंस्कृत युवती थी, अपने

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गवाक्ष - 30

  • 141

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गवाक्ष 30== बिना किसी टीमटाम के कुछ मित्रों एवं स्वरा के माता-पिता की उपस्थिति में विवाह की औपचारिकता कर दी गई । स्वरा के माता-पिता कलकत्ता से विशेष रूप से बेटी व दामाद को शुभाशीष देने के लिए बंबई ...Read Moreथे । जीवन की गाड़ी सुचारू रूप सेप्रेम, स्नेह, आनंदवआश्वासनके पहियों पर चलनी प्रारंभ हो गई। कुछ दिनों के पश्चात शुभ्रा का विवाह भीहो गया, वह अपने पति के पास चली गई । दोनों सखियाँ बिछुड़ गईं किन्तु उनका एक-दूसरे से संबंध लगातार बना रहा । दर्शन-शास्त्र में एम. ए करते हुए सत्याक्षरा ने अपना जीवन पूर्ण रूप से अपने

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गवाक्ष - 31

  • 123

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गवाक्ष 31 डॉ. श्रेष्ठी एक ज़हीन, सच्चरित्र व संवेदनशील विद्वानथे। वे कोई व्यक्ति नहीं थे, अपने में पूर्ण संस्थान थे 'द कम्प्लीट ऑर्गेनाइज़ेशन !'उनका चरित्र शीतल मस्तिष्क व गर्म संवेदनाओं का मिश्रण था । बहुत कठिनाई से ...Read Moreसाथ कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ था । अक्षराको जैसे आसमान मिल गया, उसको बहुत श्रम करना था। अपनास्वप्न साकार करने के लिए वह रात-दिन एक कर रही थी । एक वर्ष के छोटे से समय में उसने इतना कार्य कर लिया कि प्रो. आश्चर्यचकित हो गए। वे उसकी लगन से बहुत संतुष्ट थे और आज की शिक्षा से बहुत असंतुष्ट

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गवाक्ष - 32

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गवाक्ष 32== अक्षराशनै:शनै: सामान्य होने काप्रयत्न कर रही थी किन्तु आसान कहाँ होता है इस प्रकार की दुर्घटना के पश्चात सामान्य होना। वह दर्शन की छात्रा थी इसीलिए इतनी गंभीर थी, स्थिति को समझने का प्रयत्न कर रही थी। ...Read Moreदिन उसनेभाई-भाभी से कहा ; "मुझे सामान्य होनेमें समय लगेगा। आप लोग कब तक अपना काम छोड़कर यहाँ बैठे रहेंगे ?" " तुमको अकेले छोड़करचले जाएँ ?'सत्यविद्य भड़क उठा । " जब विवाह की बात कर रहा था, कितने अच्छे रिश्ते आ रहे थे तब दोनों मेरे विरुद्ध होगईं। अब विवाह भी समस्या बन जाएगी। अगर कोई हाथ पकड़ेगा भी

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गवाक्ष - 33

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गवाक्ष 33 अक्षरा काफी संभल चुकी थी किन्तु यह कोई भुला देने वाली घटना नहीं थी। उसके साथजो दुर्घटना होचुकी थी, अब उसमेंबदलाव नहीं हो सकता था लेकिन इसके आगे कोई तो ऐसा अंकुश हो जो अन्य ...Read Moreसाथ भविष्य मेंऎसी स्थिति न हो । इसीलिए उसनेभाभी की बातस्वीकार की थी औरवह बिनाभयभीत हुए पुलिस-स्टेशन गई थी । रह रहकर उसके समक्ष समाज में फैले हुए ये घिनौने व्यभिचार गर्म तेज़ लू के रूप में उसके मनोमस्तिष्क को भूनने लगते । अक्षरा इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पा लो, यहाँ किसीको कुछ पता भी नहीं चलेगा और तुम्हें जीवन

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गवाक्ष - 34

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गवाक्ष 34== सत्याक्षरा को पीड़ा मेंछोड़कर कॉस्मॉस न जाने किस दिशा की ओर चलने लगा । उसके मन में अक्षरा की पीड़ा से अवसाद घिरने लगा था, एक गर्भवती स्त्री को कितना सताकर आया था वह ! उसकेपैर जिधर ...Read Moreगए, वह उधर चल पड़ा। अपने अदृश्य रूप में वह प्रो.सत्यविद्य श्रेष्ठी के बंगले के समक्ष पहुँच गया था। भीतर जाऊँ अथवा न जाऊँ के पशोपेश में वह बहुत समय तक बाहर से गतिविधियों का निरीक्षण करता रहा । कुछेक क्षणों के पश्चात ही उसने स्वयं को तत्परकर लिया कि उसे प्रो.तक जानाहोगा। कैसा काँच की पारदर्शी दीवार सा होता

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गवाक्ष - 35

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गवाक्ष 35== प्रो. श्रेष्ठी ने अपनी पुस्तक का आरंभ किया था ; सत्यएवंअसत्य, ’हाँ’ या ‘न’ के मध्य वृत्ताकार मेंअनगिनत वर्षोंसे घूमता-टकराता मन आज भी अनदेखी, अनजानी दहलीज़पर मस्तिष्क रगड़ता दृष्टिगोचर होता है। भौतिक वआध्यात्मिकदेह के परेशून्य में कहीं ...Read Moreसंवेदनाओं- असंवेदनाओं, कोमल-कठोर भावनाओं के बीहड़ बनों से गुज़रते हुए ठिठककर विश्राम करने के लिए लालायित पाँच तत्वों से बनेशरीर का वास्तव में मोल क्या है, उसे स्वयं भी ज्ञात नहीं ---व्यक्ति कहाँ से आता है?कहाँ जाता है--?कुछ अता -पता नहीं चलता वह केवल एक इकाई भर है जो अंत में नहीं होगा । वहकेवल यह समझने को बाध्य है

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गवाक्ष - 36

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गवाक्ष 36== यकायकएक अन्य अद्भुत दृश्य उनके नेत्रों के समक्ष नाचने लगा उनके हस्तलिखित पृष्ठ ऊपर की ओर उड़ते तो रहे लेकिन नीचेज़मीन पर नहीं आए। प्रोफ़ेसर का मस्तिष्क चकराने लगा, वे विश्वास करते थे यदि प्रकृति केसाथ छेड़खानी ...Read Moreकी जाए तब वहसदा सबकासाथ देती है। माँप्रकृति के आँचल में सबके लिए प्रसन्नता व खुशियाँ भरी रहती हैं । उनके जीवन भर का संचित ज्ञान इस प्रकार ऊपर उड़ रहा था मानोउसके पँख उग आए हों, विलक्षण !उनका गंभीर, शांत मन उद्वेलित हो उठाऔर वे जैसे ही उन पृष्ठों को पकड़ने के लिए उठने लगे, उनके हाथ के नीचे

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गवाक्ष - 37

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गवाक्ष 37== कॉस्मॉस के मनको सत्यनिधि की मधुर स्मृति नहला गई । कितना कुछ प्राप्त किया था उस नृत्यांगना सेजो उसकी 'निधी'बन गया था। निधी ने भी तो यही कहा था – 'सीखने के लिएशिष्य काविनम्र होना आवश्यक है, ...Read Moreसहीअर्थों में कुछ सीख सकताहैजो अपने गुरु को सम्मान देता है अर्थात विनम्र होताहै। ' दूत ज्ञानी प्रोफ़ेसर के समक्षविनम्रतासेसिर झुकाए बैठा था। “यह छोटाआई और बड़ा आई क्या है?" उसने पूछा । " ये जीव के भीतर का 'अहं'है जो उससे छूटना ही नहीं चाहता, मनुष्य सदा स्वयं कोबड़ा तथा महान दिखानेकी चेष्टा करता है । उसे झुकना पसंद

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गवाक्ष - 38

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गवाक्ष 38== कॉस्मॉस के लिए प्रेम सरल था, संघर्ष कठिन!उसने सोचा यदि वह प्रोफ़ेसर को संघर्ष की भावना से प्रेम की भावना पर ले जा सके तब संभवत:वह आसानी से इस जीवन को समझ सकेगा। यकायक ऊपर अधर में ...Read Moreकाटते हुए कुछपृष्ठ इस प्रकार से आकर जमनेलगे जैसे किसी ने उन्हें एक सूत्र से बांधकर नीचे उतारा हो । कॉस्मॉस ने देखा सबसे ऊपर केपृष्ठ पर लिखा था :- 'जीवन --संघर्ष !' प्रो.श्रेष्ठी के मुख पर एक सरल मुस्कान थी । "आपने बताया प्रेम जीवन है, संघर्ष जीवन है । संघर्ष में कठोरता है, खुरदुरापन है जबकि प्रेम में

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गवाक्ष - 39

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गवाक्ष 39== " आपके अनुसार जीवन का क्या लक्ष्य है, उसका ध्येय क्या होना चाहिए?" "जो सारी बातें मैंने तुमसे की हैं वे जीवन से ही संबंधित हैं मेरे दोस्त!जीवन किसी एक प्रकार की वस्तु का नाम नहीं है, ...Read Moreकुछ मिलकर जीवन बनता है। उसके सभी पहलुओं को हम किस प्रकार देखते हैं ?यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। तुम जान गए हो कि पृथ्वी के समस्त प्राणियों में मस्तिष्क है किन्तु केवल मनुष्य को ही उसकी उपयोगिता रूपी उपहार प्रदान किया गया है । हमारे शरीर में प्रत्येक अंग की अपनी महत्ता है। मस्तिष्क में चेतना है, जागृतावस्था

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गवाक्ष - 40

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गवाक्ष 40== कॉस्मॉस उलझन में दिखाई दे रहा था । " वह भी बता दो, संभव है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देकर तुम्हारी संतुष्टि कर सकूँ । "मैंने महसूस किया है कि मनुष्य बहुत सी बातों को अनदेखा ...Read Moreरहता है । मैंने बहुत से लोगों को यह कहते सुनाहै ' सब चलताहै---' इस प्रकार त्रुटियाँ करके बार-बार यह कहना औचित्यपूर्ण नहीं है क्या?" "मनुष्य में अच्छाईयां, बुराईयाँ सब हैं । त्रुटि होना स्वाभाविक है, न होना कभी अस्वभाविक भी लगता है किन्तु जब वह अपनी त्रुटियों को बारंबार दोहराता है तथा दूसरों को हानि पहुंचाता है तब उसकी

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गवाक्ष - 41

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गवाक्ष 41== कुछ ही देर में कार मंत्री सत्यप्रिय के बंगले के बाहर जाकर रुकी। मार्ग में कुछ अधिक वार्तालाप नहीं हो सका था। मंत्री जी के बंगले के बाहर चिकित्सकोंकी व अन्य कई लोगों कीगाड़ियाँ खडी थीं, काफी ...Read Moreजमा थे और उनके स्वास्थ्य के बारे में चर्चाकर रहे थे। प्रोफेसर विद्य को देखते ही वहाँ उपस्थित लोगों ने उन्हें आदर सहित भीतर जाने दिया था । वे मंत्री जी केकुछेक उन चुनिंदा लोगों में थे जिनसेवहाँ के अधिकांश लोगपरिचित थे। कॉस्मॉस को अपने छद्म रूप में ही जाना था। अत: दोनों के मार्ग भिन्न थे किंतु लक्ष्य वउद्देश्य

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गवाक्ष - 42

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गवाक्ष 42== चिकित्सकोंने मंत्री जी को मृत घोषित कर दिया। मंत्री जी के सुपुत्र पहले ही से उपस्थित थे, पिता के न रहने की सूचना जानकर उनकी ऑंखें अश्रु-पूरित हो गईं लेकिन मनों में जायदाद के बँटवारे की योजना ...Read Moreहो गई थी । बहन भक्ति के पहुँचने की प्रतीक्षा करनी ही थी। मंत्री जी अपने कमरे से निकलकर आत्मा के स्वरूप में कॉस्मॉस के साथ अपने आँगन के वृक्ष पर जा बैठे । वे दोनों केवल प्रोफेसर के ज्ञान-चक्षुओं को दिखाई दे रहे थे। डॉ. श्रेष्ठी नीचे अन्य लोगों के साथ बैठे थे । मंत्री जी के दोनों पुत्र

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गवाक्ष - 43

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गवाक्ष 43== मंत्री जी कॉस्मॉस के साथ वृक्ष पर बैठकर अपनी मृत्यु का तमाशा देखकर अपने बीते दिनों में पत्नी स्वाति के पास पहुँच गए थे, वेअपने पुत्रों के बारे में भी सोचतेरहे थे। काश ! मेरे बेटों को ...Read Moreउनकी माँ स्वाति जैसीसमझदार जीवन-साथी मिल सकती ! बिटियाभक्तिमेंमाँकीसमझदारी व गुण सहज रूप से आए थे। मनुष्य-जीवन प्राप्त हुआ है तो मनुष्य कीसेवा मनुष्य का धर्म है । आज की परिस्थितियों में जागृत मनुष्य के कुछ कर्तव्य बनते हैं, वह केवल अपने जीवन को हीअपनालक्ष्य समक्ष रखकर नहींचल सकता। समाज के प्रति जागरूकता उसका दायित्वहै। भक्ति स्वामीविवेकानंद के विचारों सेबहुत

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गवाक्ष - 44

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गवाक्ष 44 एक अजीबोगरीब मनोदशा में कॉस्मॉस ने आत्माको प्रणाम किया, न जाने किस संवेदना के वशीभूत हो सत्यप्रिय ने उसके माथे पर अदृश्य चुंबन अंकित किया और पवन-गति से सब तितर-बितर हो गया। सत्यव्रत ने अंत:करण से ...Read Moreनमन किया तथा पृथ्वीसे सदा के लिएविदा ली। एक सूक्ष्म पल के लिए पुष्पों से लदी उनकीपार्थिव देह में जैसे कंपन सा हुआ जिसको केवलज्ञानी प्रो.श्रेष्ठी तथा कॉस्मॉस समझ सके। परम प्रिय मित्रकी बिदाई की अनुभूति सेप्रो.पुन:लड़खड़ा से गए, उन्हें पास खड़ीभक्ति ने संभाल लिया। मीडिया को न किसी से सहानुभूति थी, न ही किसी के जाने की पीड़ा । उसे

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गवाक्ष - 45

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गवाक्ष 45== वह एक सामान्य मनुष्य की भाँति चल रहा था। प्रोफ़ेसर व भक्ति प्रश्नचिन्ह बने एक-दूसरे की ओर अपलक निहारने लगे। कुछ पल पश्चात वहशिथिल चरणों से लौट आया । "बहुत गंभीरलग रहेहो ?" प्रोफ़ेसर ने पूछा । ...Read Moreमैं दंडित कर दिया गया हूँ ---" " कैसे पता चला ?" "मैं जिसविमान से गवाक्ष से पृथ्वी पर आता था, वह स्वामी ने वापिसमँगवा लिया है । वृक्ष पर मेरे लिए गवाक्ष में प्रयुक्त होने वाली भाषा में सूचना लिखी गईहै। मुझको पहले से ही महसूस होने लगा था किन्तु अब स्थिति स्पष्ट रूप से मेरे समक्ष है। मुझे

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गवाक्ष - 46

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गवाक्ष 46== ऎसी अध्ययनशील छात्रा के साथऐसा क्योंहुआ होगा जो वह इस प्रकार साहस छोड़ बैठी --कॉस्मॉस ने उसकेगर्भवती होने की सूचना देकर उन्हें बैचैन कर दिया था। 'जीवन में इस 'क्यों'का ही उत्तर प्राप्त करना हीतो सबसे कठिन ...Read Moreहै । ' उनके मनमें बवंडर सा उठा । कॉस्मॉस केप्रश्नों केउत्तर देते हुए भीप्रोफेसर नेसोचा---" क्या ज़िंदगी हमारे साथ और हम ज़िंदगी के साथ खेल नहीं करते ?" उनका मनअपनी प्रियछात्रा के लिए बहुत उदास था, साथ ही उस भोले कॉस्मॉस के लिए भी जिसनेइस पृथ्वी पर आकर यहाँ की चालाकियाँ सीखने का हुनर अपने भीतर उतारना शुरू कर

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गवाक्ष - 47 - अंतिम भाग

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गवाक्ष 47== कॉस्मॉस सत्यनिधि और उसकाअंतिम स्पर्श भुला नहीं पारहा था, उसकी याद उसेकहीं कोई फाँस सी चुभा जाती । कितने अच्छेमित्र बन गए थे निधी और वह छोटा सा बालक जिसका पिता महानाटककर था! अब जीवन का अवसर ...Read Moreहै तो कभी न कभी निधी से और उस नन्हे बच्चे से मिलने काप्रयास करेगा जिससे उसने 'बाई गॉड 'कहना सीखा था । उसके नेत्रों में चमक भर आई । हम समाज के लिए ऐसा कुछ कर सकें जो हमें अमर बना दे । " एक जन्म के पश्चात तो मुझे फिर से लौटकर जाना है ---" कॉस्मॉस का चिंतन

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