गवाक्ष - Novels
by Pranava Bharti
in
Hindi Moral Stories
गवाक्ष बसंत पंचमी दिनांक-12 2 2016 (नमस्कार मित्रो ! यह उपन्यास ‘गवाक्ष’ एक फ़िक्शन है जिसे फ़िल्म के लिए तैयार किया जा रहा था किन्तु इसके प्रेरणास्त्रोत 'स्व. इंद्र स्वरूप माथुर' का स्वर्गवास हो गया प्रोफ़ेसर माथुर ...Read Moreडिज़ाइन संस्थान'NID'अहमदाबाद में एनिमेशन विभाग के 'हैड' थे वर्षों पूर्व मैंने उनके साथ कई एनिमेशन की फ़िल्मों की पटकथाएं लिखी थी बाद में वो हैदराबाद 'एनिमेशन इंस्टिट्यूट 'के डायरेक्टर होकर चले गए थे एक बहुत बड़ी दुर्घटना के कारण उन्हें वापिस अहमदाबाद लौटना पड़ा यहाँ पर उन्होंने 'सिटी प्लस फ़िल्म व टेलीविज़न इंस्टिट्यूट' को खड़ा किया जिसमें मैं भी विज़िटिंग फ़ैकल्टी रही व बी.ए के
गवाक्ष बसंत पंचमी दिनांक-12 2 2016 (नमस्कार मित्रो ! यह उपन्यास ‘गवाक्ष’ एक फ़िक्शन है जिसे फ़िल्म के लिए तैयार किया जा रहा था किन्तु इसके प्रेरणास्त्रोत 'स्व. इंद्र स्वरूप माथुर' का स्वर्गवास हो गया प्रोफ़ेसर माथुर ...Read Moreडिज़ाइन संस्थान'NID'अहमदाबाद में एनिमेशन विभाग के 'हैड' थे वर्षों पूर्व मैंने उनके साथ कई एनिमेशन की फ़िल्मों की पटकथाएं लिखी थी बाद में वो हैदराबाद 'एनिमेशन इंस्टिट्यूट 'के डायरेक्टर होकर चले गए थे एक बहुत बड़ी दुर्घटना के कारण उन्हें वापिस अहमदाबाद लौटना पड़ा यहाँ पर उन्होंने 'सिटी प्लस फ़िल्म व टेलीविज़न इंस्टिट्यूट' को खड़ा किया जिसमें मैं भी विज़िटिंग फ़ैकल्टी रही व बी.ए के
गवाक्ष 2 मंत्री जी के मुख से मृत्यु की पुकार सुनकर दूत प्रसन्न हो उठा । ओह ! कोई तो है जो उसे पुकार रहा है । 'अब उसका कार्य आसान हो जाएगा' वह उत्साहित हो गया -- ...Read More! मैं आपको ही लेने आया हूँ । अब तक मंत्री जी किसी स्वप्नावस्था में थे, दूत की वाणी ने उनके नेत्र विस्फ़ारित कर दिए, वे चौकन्ने हो उठे। अपनी वस्त्रहीन देह संभालते हुए वे बोले -- मेरे अंतरंग कक्ष में किसीको आने की आज्ञा नहीं है, तुम कैसे चले आए और दिखाई क्यों नहीं दे रहे हो ? क्या उस पर्दे के पीछे छिपे हो ?वे सकपका से गए । इस
गवाक्ष 3 == मंत्री जी के आदेशानुसार वह गुसलखाने से निकल आया था और उनके सुन्दर, व्यवस्थित 'बैड रूम' का जायज़ा लेने लगा था । मंत्री जी के बड़े से सुन्दर, सुरुचिपूर्ण कक्ष में कई तस्वीरें थीं, जिनमें कुछ ...Read Moreपर और कुछ पलंग के दोनों ओर पलंग से जुड़ी हुई छोटी-छोटी साफ़ -सुथरी सुन्दर मेज़ों पर थीं । कॉस्मॉस ने ध्यान से देखा एक सौम्य स्त्री की तस्वीर कई स्थानों पर थी। किसी में वह मंत्री जी के साथ थी, किसी में पूरे परिवार के साथ, किसी में एक प्रौढ़ा स्त्री के साथ और उसी सौम्य, सरल दिखने वाली स्त्री की एक बड़ी सी तस्वीर ठीक मंत्री जी
गवाक्ष 4=== मंत्री जी स्वयं इस लावण्यमय दूत से वार्तालाप करना चाहते थे। वे भूल जाना चाहते थे कि बाहर कितने व्यक्ति उनकी प्रतीक्षा कर हैं, वे यह भी याद नहीं रखना चाहते थे कि 'कॉस्मॉस' नामक यह प्राणी ...Read Moreजो भी है इतने संरक्षण के उपरान्त किस प्रकार उन तक पहुंचा ? वे बस उससे वार्तालाप करना चाहते थे, उसकी कहानी में उनकी रूचि बढ़ती जा रही थी । " अपने बारे में विस्तार से बताओ----"मंत्री जी ने अपना समस्त ध्यान उसकी ओर केंद्रित कर दिया। " जी, जैसा मैंने बताया मैं कॉस्मॉस हूँ, गवाक्ष से आया हूँ । धरती पर मुझे 'मृत्यु-दूत'माना जाता है। हमारा निवास 'गवाक्ष' में है, आप उसे स्वर्ग,
गवाक्ष 5== सत्यव्रत ने आँखें मूंदकर एक लंबी साँस ली। वे समझ नहीं पा रहे थे इस अन्य लोक के प्राणी से वे क्या और कैसे अपने बारे में बात करें? " हर वह धातु सोना नहीं होती जो ...Read Moreहुई दिखाई देती है । " उन्होंने मुरझाए शब्दों में कहा । "अर्थात ---??" उसकी बुद्धि में कुछ नहीं आया अत: उसने उनसे पूछा; "वैसे आप इतने व्यथित क्यों हैं? क्या इसलिए कि मैं आपको ले जाने आया हूँ ? " "नहीं दूत, मैं इस तथ्य से परिचित हूँ कि समय पूर्ण होने पर सबको वापिस अपने वास्तविक निवास पर लौटना होता है । " "क्या मैं अपेक्षा करूँ आप मुझे
गवाक्ष 6= वे बात करते-करते जैसे बार-बार अपने वर्तमान से भूत में प्रवेश कर जाते थे । अपने क्षेत्र में प्रवेशकर उन्होंने राजनीति की वास्तविकता को समझा था । समाज के लिए कुछ व्यवहारिक कार्य करने का उनका उत्साह ...Read Moreक्षेत्र में प्रवेश करने के पश्चात कुछ ही द
गवाक्ष 7== माता -पिता की एकमात्र संतान का नाम सत्यव्रत इसलिए रखा गया था कि एक सदाचारी, सरल किन्तु ऐश्वर्यपूर्ण परिवार में जिस बाल-पुष्प का जन्म हुआ, वह न जाने कितनी मिन्नतों, प्रार्थनाओं के पश्चात उस घर के आँगन ...Read Moreखिला था । जीवन में जितनी भी खुशियाँ, सुविधाएं हो सकती हैं, वे सब इस बालक को प्राप्त हुई। बालपन पर जिस वस्तु पर भी वह हाथ रख देता, वह कहीं से भी उसके पास पहुँचा दी जाती । परिणाम वही हुआ जो आवश्यकता से अधिक लाड़-दुलार पाने वाले बच्चों का होता है। सत्यव्रत कभी अपने सत्य के व्रत में नहीं रह सका। प्रत्येक वस्तु की माँग पहले उसकी
गवाक्ष 8= एक दिन सैवी ने अपने कॉलेज की ज़हीन छात्रा स्वाति को अपनी ' फ़ैक्ट्री ' के द्वार पर ऑटोरिक्शा से उतरते देखा और वह बैचैन हो उठा । अपने कॉलेज के दिनों से वह उसे पसंद करने ...Read Moreथा । वह एक मध्यवर्गीय स्वाभिमानी छात्रा थी । उसने पैसे वाले उस बिगड़ैल रईस की ओर कभी ध्यान नहीं दिया था । कई बार प्रयास करने पर भी वह उसके हाथ न लगी । उस लड़की में अवश्य ही ऐसा कुछ था जिसे वह कई वर्ष पश्चात भी भुला नहीं पाया था। वह अपने कार्यालय में किसी से उसके बारे में कुछ पूछ नहीं सकता था, यह उस जैसे अकड़ू रईस के लिए असम्मानजनक व अशोभनीय था
गवाक्ष 9= प्रथम मिलन की रात्रि में स्वाति ने अपने संस्कारों के तहत पति के पैर छुए ; "यह क्या बकवासबाज़ी है ----यह मत समझना इन दिखावटी बातों से मैं तुम्हारे प्रभाव में आ जाऊँगा ---" और वह झल्लाकर ...Read Moreसे बाहर निकल गया । स्वाति चुपचाप उसे देखती रही थी । वह पुरातन अंधविश्वासी परंपराओं से जकड़ी हुई नहीं थी । सब कुछ जानते, समझते, बूझते उसने सत्यव्रत जैसे लड़के को पति के रूप में स्वीकार किया था । विवाह उसके लिए चुनौती था तो पति को सदमार्ग पर लाना, माँ व पुत्र के बीच सेतु बनना, सत्यप्रिय के ह्रदय में माँ के प्रति आदर व
गवाक्ष 10 प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी चांडाल-चौकड़ी अपनी मस्ती में थी कि एक हादसे ने सत्यव्रत को झकझोर दिया, उसे जीवन की गति ने पाठ पढ़ा दिया। एक रात्रि जब वह मित्रों के साथ खा-पीकर अपनी ...Read Moreकार में घूमने निकला तब एक भयंकर दुर्घटना घटी। एक भैंस उसकी कार के सामने आ गई, भैंस के मालिक ने कई लठैतों के साथ मिलकर उसे मारने के लिए घेर लिया। सारे मित्र दुर्घटना-स्थल से भाग निकले, वह कठिन परिस्थिति में फँस गया। उसको बुरी प्रकार पीटा गया, जेब से सारे पैसे निकाल लिए गए, हीरे की घड़ी, अँगूठियाँ सब छीन ली गईं, उसकी एक टाँग बुरी प्रकार कुचल
गवाक्ष 11=== पॉंच-पॉंच वर्ष के अंतर में सत्यव्रत व स्वाति की फुलवारी में क्रमश: तीन पुष्प खिले। दो बड़े बेटे व अंत की एक बिटिया। बस--- यहीं फिर से सत्यव्रत के जीवन में अन्धकार छाने लगा। सत्यव्रत व स्वाति ...Read Moreएक बिटिया की ललक से जुड़े थे । इस दुनिया से विदा लेते समय स्वाति व सत्यव्रत में कुछ पलों का वार्तालाप हुआ था । स्वाति समझ रही थी कि वह जा रही है। नन्ही सी बिटिया के गाल पर ममता का चुंबन लेकर स्वाति ने उसे सत्यव्रत की गोदी में दे दिया। सत्यव्रत ने बिटिया के माथे को स्नेह से चूम लिया और उसे पालने
गवाक्ष 12= संभवत: कॉस्मॉस मंत्री जी को उस विषय से हटाना चाहता था जो उन्हें पीड़ित कर रहा था ; " क्या राजनीति बहुत अच्छी चीज़ है जो आप इसमें आए?" दूत नेअपनी बुद्धि के अनुसार विषय-परिवर्तन करने चेष्टा ...Read More। "राजनीति कोई चीज़ नहीं है, यह एक व्यवस्था है । किसी भी कार्य-प्रणाली के संचालन के लिए एक व्यवस्था की आवश्यकता होती है। समाज को चलाने के लिए एक व्यवस्था तैयार की गई, यही व्यवस्था राजनीति है यानि--'राज करने की नीति'! वास्तव में यह राज नहीं 'सेवा-नीति' होनी चाहिए। इसमें सही सोच, वचन-बद्धता, एकाग्रता, सही मार्गदर्शन होना चाहिए और इसमें ऐसे व्यक्तियों को कार्यरत होना चाहिए जो अपने विचार शुद्ध
गवाक्ष 13== नीले अंबर से झाँकतीं अरुणिमा की छनकर आती लकीरें, वातावरण में घुँघरुओं की मद्धम झँकार, कोयलकी कूक से मधुर स्वर ---दूत को इस सबने आकर्षित किया, स्वत: ही उसके पाँव उस मधुर स्वर की ओर चलने के ...Read Moreउदृत हो गए। उसके लिए अदृश्य रूप में रहना श्रेयस्कर था । अब उसने सोच लिया था जहाँ उसे जाना होगा अदृश्य रूप में ही जाएगा। भीतर जाकर तो उसे अपना परिचय देना ही होता है। न जाने क्यों उसे लग रहा था कि सब स्थानों पर भटककर उसे अंत में मंत्री जी के पास ही आना होगा । अत:उसने अपने अदृश्य यान को उसी वृक्ष पर टिकाए रखा और स्वर-लहरी की ओर चल
गवाक्ष 14 निधी के चेहरे पर प्रश्न पसरे हुए थे, ह्रदय की धड़कन तीव्र होती जा रही थी। कुछेक पलों पूर्व वह अपनी साधना में लीन थी और अब---एक उफ़नती सी लहर उसे भीतर से असहज कर रही थी ...Read Moreपरिस्थिति का प्रभाव व्यक्ति के मन और तन पर कितना अद्भुत रूप से पड़ता है ! वह खीज भी रही थी, अपना उत्तर प्राप्त करने के लिए उद्वेलित भी थी और उसके समक्ष प्रस्तुत ‘रूपसी बाला’ केवल मंद -मंद मुस्कुराए जा रही थी । निधी की साधना का समय अभी शेष था और वह न जाने किस उलझन मेंउलझ गई थी । अपना नाम बताओ और अपने यहाँ आने का
गवाक्ष 15= “वृक्षों के पत्तों से लहलहाती सरसराहट, खुले आकाश में बादलों का इधर से उधर तैरना, पशुओं के रंभाने की आवाज़ें इन सबमें तुम्हें संगीत सुनाई दे रहा है?""कुछ आवाज़ें तो सुनाई देती हैं ---"कॉस्मॉस ने उत्तर दियायह ...Read Moreतो वह सदा से सुनता ही आया है, इस
गवाक्ष 16== "अच्छा ! संगीत व नृत्य-कला के पीछे भी कोई कहानी है क्या?"कॉस्मॉस अब निश्चिन्त हो गया था, उसे सत्यनिधि से वार्तालाप करने में आनंद आ रहा था उसे । " हाँ, है तो परन्तु इसमें सत्य कितना ...Read More? यह नहीं कह सकती। "" मुझे उससे कोई अंतर नहीं पड़ता । बस आप मुझे कहानी सुनाइए। " वह बच्चों की भाँति मचलने लगा। उसे देखकर सत्यनिधि के मुख पर कोमल मुस्कुराहट पसर गई । " सुनो --युगों में सदा परिवर्तन होता रहा है यानि हर युग के बाद परिवर्तन होता है, परिवर्तन केदौरान कुछ बातें पुरानी रह जाती हैं तो कुछ नवीन जुड़जाती
गवाक्ष 17== निधी को वास्तव में दुःख था, बेचारा ! इतना कठिन कार्य संभालता है फिर भी उसकी स्थिति धरती के किसी निम्नवर्गीय प्राणी से अधिक अच्छी नहीं थी । "इस भौतिक संसार में इस कला का यह परिचय ...Read Moreप्रथम चरण ही था। अभी इसमें बहुत कुछ संलग्न करने की आवश्यकता थी, पारंपरिक शैक्षणिकता का सम्मिश्रण होना आवश्यक था। शास्त्रीय संगीत केवल मनोरंजन की कला नहीं है, यह नैतिकता, आचार व आध्यात्मिकता कासमन्वय है अत:इसमें कुछ विशेष योग्यताओं का होना अपेक्षित है। ""तो इस कला का शिक्षण कैसे लिया जा सकता है?""इस शैक्षणिक कला में गुरु-शिष्य परंपरा है तथा इसकेमूल सिद्धांत गुरु, विनय एवं साधना हैं।
गवाक्ष 18== "आपको भी संगीत व नृत्य सीखने की आज्ञा नहीं थी, फिर आप कैसे इस कला में प्रवीण हो गईं?आप क्या छिपकर इस कला का अभ्यास करती हैं?""तुम बहुत चंचल हो, चुप नहीं रह सकते न ?बीच-बीच में ...Read Moreरहोगे तो कुछ नहीं बताऊँगी । "" नहीं, अब चुप रहूंगा, लेकिन जब बात समझ में न आए तो आपको बताना चाहिए न --- उसने एक बालक की भाँति मुह फुलाया और अपने होठों पर उँगली रखकर बैठ गया । सत्यनिधि ने मुस्कुराकर अपनी बात आगे बढ़ाई । पहले समय में कला सीखने की आज्ञा तो मिलती नहीं थी, गुरु भी अपनी कला को गूढ़
गवाक्ष 19== कॉस्मॉस के इस बचपने से सत्यनिधि के चेहरे पर फिर मुस्कुराहट पसर गई। उसे प्रत्येक बात में उत्सुकता दिखाने वाला, यह बालक सा लगने वाला कॉस्मॉस बहुत प्यारा सा लगने लगा था। अपनी बातों को उसके साथ ...Read Moreउसे सुख दे रहा था। 'क्या दूसरे ग्रह के ऐसे वासी जो धरती के लोगों के प्राण हरकर ले जाते हों, इतने प्यारे हो सकते है?'सत्यनिधि सोच रही थी | "सफ़लता दर्पण की भाँति है, जैसे दर्पण टुकड़ों में बँट जाने के पश्चात भी अपने प्रतिबिम्बन की योग्यता नहीं छोड़ता उसी प्रकार सफ़लता इतनी आसानी से प्राप्त नहीं होती और जब हो जाती है तब जीवन में स्थाई स्थान बना लेती है
गवाक्ष 20== रेकॉर्डर का बटन दबा दिया गया, सत्यनिधि ने नटराज व शारदा माँ की प्रतिमाओं के समक्ष वंदन किया और कॉस्मॉस की ओर देखकर मुस्कुरा दी जो उठकर उसके पास आकर उसके जैसे ही प्रणाम करने की चेष्टा ...Read Moreरहा था। वातावरण में संगीत की स्वर-लहरी बिखरने लगी और नृत्यांगना के कदम धीमे-धीमे उठते हुए लयबद्ध होने लगे। कुछेक पलों में वह संगीत के लय -ताल में खोने लगी --'तिगदा दिग दिग थेई'के साथ उसने चक्कर काटने शुरू कर दिए । कॉस्मॉस भी लट्टू की भाँति घूमने लगा था। कितना आनंद आ रहा था ! वह सब भूलता जा रहा था, कौन है?कहाँ है?कहाँ से आया है?'थेई' के साथ वह
गवाक्ष 21== निधी को शर्मिंदगी हुई, कैसी बचकानी बातें कर रही है! उसके साथ बैठा हुआ मृत्यु-दूत है, कॉस्मॉस! उसका कार्य-क्षेत्र किसी एक स्थान पर कैसे हो सकता है? उसनेअपने दोनों कान पकड़ लिए। दोनों पुराने मित्रों ...Read Moreभाँति खिलखिलाकर हँस पड़े। निधी ने उसे हाथ के इशारे से आगे बढ़ने को कहा, कॉस्मॉस को उसका इशारा समझने में एक पल लगा । "अरे भई ! आगे बढ़ो न ---मेरा मतलब है आगे सुनाओ न फिर क्या हुआ ?""इस भाषा में बोलो न ---"कॉस्मॉस ने बच्चे की भाँति ठुनककर कहा । “पहले बताओ तुम इतनी अच्छी भाषा कैसे बोल लेते हो?""बहुत आसान है, जहाँ जाता हूँ,
गवाक्ष 22== उनका एकांत का समय पूरा हो चुका था, बाहर दर्शन की भीड़ जमा हो चुकी थी, द्वार पर धीमे-धीमे खटखटाहट शुरू हो चुकी थी। उन्होंने मेरी ओर याचना भरी दृष्टि सेदेखा, मेरी योजना वहाँ भी असफ़ल हो ...Read Moreथी। मैंने उनकेदेश में उनके घर जाने का निर्णय लिया । " उनकी पत्नी को ले जाने का विचार आया अथवा उनके पुत्र को”निधी की एकाग्रता भंग हुई । "नहीं, किसीको नहीं, बस उस व्यक्ति के परिवार से मिलने का विचार आया जो अपने परिवार के प्रति न तो कृतज्ञ था, न ही ईमानदार !यहाँ नाटकबाज़ी कर रहा था । बहुत पीड़ा होती है ऐसे लोगों को देखकर
गवाक्ष 23== कॉस्मॉस पीड़ा से भर उठा था किन्तु अब उसे अपना सफ़र आगे बढ़ाना था। सत्यनिधि भीतर से भीग उठी, उसने आगे बढ़कर कॉस्मॉस को आलिंगन में ले लिया, उसके नेत्रों में अश्रुकण टिमटिमा रहे थे। कॉस्मॉस के ...Read Moreयह एक और नवीन, संवेदनपूर्ण अनुभव था। कई पलों तक वह एक कोमल सी संवेदना से ओत -प्रोत निधि से चिपका रहा । यमराज के मानस-पुत्रों में इस प्रकार की संवेदना ! कुछ पल पश्चात वह निधि से अलग हुआ और हाथ हिलाते हुए पीछे मुड़ -मुड़कर देखते हुए उसकी दृष्टि से ओझल हो गया । कॉस्मॉस के मन में एक अजीब प्रकार का आलोड़न चल रहा था। मन में कहीं कुछ
गवाक्ष 24== सत्यनिधि के पास से लौटकर कॉस्मॉस कुछ अनमना सा हो गया, संवेदनाओं के ज्वार बढ़ते ही जा रहे थे। उसके संवेदनशील मन में सागर की उत्तंग लहरों जैसी संवेदनाएं आलोड़ित हो रही थीं। जानने और समझने के ...Read Moreपृथ्वी-वासियों के इस वृत्ताकार मकड़जाल में वह फँसता ही जा रहा था। गवाक्ष में जब कभी पृथ्वी एवं धरती के निवासियों की चर्चाएं होतीं, पृथ्वी का चित्र कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता मानो पृथ्वी कारागार है और यदि कोई दूत अपनी समय-सीमा में अपना कार्य पूर्ण नहीं कर पाता तब उसको एक वर्ष तक पृथ्वी पर रहने का दंड दिया जा सकता है। इस समय अपने यान के समीप वृक्ष
गवाक्ष 25== अचानक कॉस्मॉस की दृष्टि एक श्वेत रंग के चार-पहिया वाहन पर पड़ी, जिसने उसे आकर्षित किया और वह उस वाहन के पीछे अपने अदृश्य रूप में चल दिया। एक लंबे-चौड़े अहाते में जाकर वह गाड़ी रुकी और ...Read Moreश्वेत वस्त्रधारी मनुष्य उस में से एक महिला को निकालकर एक लंबी सी चार पहियों वाली लंबी खुली हुई गाड़ी जैसी चीज़ पर लिटाकर ले जाने लगे । " लो स्ट्रेचर आ गया, हम अस्पताल पहुँच गए हैं अक्षरा " कॉस्मॉस के कान खुले, दो नवीन शब्द थे 'स्ट्रेचर'जिसे महिला के साथ वाली उसीकी हमउम्र महिला के मुख से सुना था । दूसरा अस्पताल ! जिसके भीतर उस
गवाक्ष 26 समय-यंत्र की रेती नीचे पहुँच चुकी थी। देखो!मेरा तो सारा खेल समाप्त हो चुका है, मैं अब निश्चिन्त हूँ, दंड तो मिलेगा ही मुझे। फिर मैं कुछ सुखद यादें समेटकर क्यों न ले जाऊँ ...Read More वह अपनी पूर्ण योग्यता से सत्याक्षरा को फुसलाने की चेष्टा में संलग्न हो गया। जिस प्रकार 'सेल्समैन'अपने 'प्रोडक्ट' को बेचने के लिए कोई न कोई मार्ग तलाशते रहते हैं, दूत भी उस गर्भवती को फुसलाने की चेष्टा जी-जान से कर रहा था। इस संसार में दुःख और परेशानियों के अतिरिक्त और है क्या? सच कहना!क्या इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति मोक्ष की इच्छा, आकांक्षा नहीं करता?और तुम हो कि एक और प्राणी को
गवाक्ष 27== यह निरीह कॉस्मॉस जहाँ भी जाता, वहीं से अपने भीतर एक नई संवेदना भरकर ले आता । भयभीत भी था किन्तु बेबस भी। उसकी बुद्धि में कुछ भी नहीं आ रहा था, वह क्या करे? मंत्री जी ...Read Moreउसे अपने प्रोफ़ेसर के कार्य में विघ्न न डालने की हिदायत दी थी जिसका उसने पालन करने का प्रयास भी किया था परन्तु उसके भीतर उगती संवेदना ने उसे एक गर्भवती स्त्री की मनोदशा व शारीरिक पीड़ा से आत्मग्लानि से भर दिया था । " समर्पण ---अपनेआपको झुका देना और माँ तो सदा बच्चे के समक्ष झुकती ही आई है। " कॉस्मॉस के लिए यह एक
गवाक्ष 28== अट्ठारह वर्ष की होने पर भव्य समारोह में धूमधाम से सत्याक्षरा का जन्मदिन मनाते हुए पिता सत्यालंकार को दिल का भयंकर दौरा पड़ा और परिवार में दुःख और मायूसी के बादलों ने आनंद व प्रसन्नता को अपनी ...Read Moreचादर के नीचे ढ़क लिया । इतनी शीघ्र बदलाव हो सकता है क्या?जीवन की प्रसन्नताएँ इतनी क्षणभृंगुर! लगता, दिन के उजियारे काल -रात्रि में परिवर्तित हो गए। कुछ ही समय में जीवन की वास्तविकता स्वीकार ली गई, थमा हुआ सा जीवन पुन:गति पकड़ने की चेष्टा में संलग्न हो गया । सत्यनिष्ठ तब तक अपनी शिक्षा पूर्ण करके एक सम्मानीय पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था। वह बहन तथा माँ
गवाक्ष 29== स्वरा बंगाल की निवासी थी और बंबई में कार्यरत थी । सत्यनिष्ठ के संस्कार व व्यवहारों के प्रति आकर्षित हो वह उससे प्रेम करने लगी थी । संगीत की सुरीली धुन सी स्वरा के कंठ में लोच, ...Read Moreव ईमानदारी थी । वह सत्यनिष्ठ के संवेदनशील व पारदर्शी व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित हुई थी। स्वरा के मन की क्यारी में संदल महक रहा था, यह महक उसे व सत्यनिष्ठ को ऐसे भिगो रही थी जैसे कोई उड़ता कबूतर ऊपर से बरसात के सुगंध भरे पानी में भीगकर अपने पँख फड़फड़ाता निकल जाए और पता भी न चले कि कब ? कैसे ? मन भीग उठा। वह सुसंस्कृत युवती थी, अपने
गवाक्ष 30== बिना किसी टीमटाम के कुछ मित्रों एवं स्वरा के माता-पिता की उपस्थिति में विवाह की औपचारिकता कर दी गई । स्वरा के माता-पिता कलकत्ता से विशेष रूप से बेटी व दामाद को शुभाशीष देने के लिए बंबई ...Read Moreथे । जीवन की गाड़ी सुचारू रूप से प्रेम, स्नेह, आनंद व आश्वासन के पहियों पर चलनी प्रारंभ हो गई। कुछ दिनों के पश्चात शुभ्रा का विवाह भी हो गया, वह अपने पति के पास चली गई । दोनों सखियाँ बिछुड़ गईं किन्तु उनका एक-दूसरे से संबंध लगातार बना रहा । दर्शन-शास्त्र में एम. ए करते हुए सत्याक्षरा ने अपना जीवन पूर्ण रूप से अपने
गवाक्ष 31 डॉ. श्रेष्ठी एक ज़हीन, सच्चरित्र व संवेदनशील विद्वान थे। वे कोई व्यक्ति नहीं थे, अपने में पूर्ण संस्थान थे 'द कम्प्लीट ऑर्गेनाइज़ेशन !'उनका चरित्र शीतल मस्तिष्क व गर्म संवेदनाओं का मिश्रण था । बहुत कठिनाई ...Read Moreउनके साथ कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ था । अक्षरा को जैसे आसमान मिल गया, उसको बहुत श्रम करना था । अपना स्वप्न साकार करने के लिए वह रात-दिन एक कर रही थी । एक वर्ष के छोटे से समय में उसने इतना कार्य कर लिया कि प्रो. आश्चर्यचकित हो गए। वे उसकी लगन से बहुत संतुष्ट थे और आज की शिक्षा से बहुत असंतुष्ट
गवाक्ष 32== अक्षरा शनै:शनै: सामान्य होने का प्रयत्न कर रही थी किन्तु आसान कहाँ होता है इस प्रकार की दुर्घटना के पश्चात सामान्य होना। वह दर्शन की छात्रा थी इसीलिए इतनी गंभीर थी, स्थिति को समझने का प्रयत्न कर ...Read Moreथी। एक दिन उसने भाई-भाभी से कहा ; "मुझे सामान्य होने में समय लगेगा। आप लोग कब तक अपना काम छोड़कर यहाँ बैठे रहेंगे ?" " तुमको अकेले छोड़कर चले जाएँ ?'सत्यविद्य भड़क उठा । " जब विवाह की बात कर रहा था, कितने अच्छे रिश्ते आ रहे थे तब दोनों मेरे विरुद्ध हो गईं। अब विवाह भी समस्या बन जाएगी। अगर कोई हाथ पकड़ेगा भी
गवाक्ष 33 अक्षरा काफी संभल चुकी थी किन्तु यह कोई भुला देने वाली घटना नहीं थी । उसके साथ जो दुर्घटना हो चुकी थी, अब उसमें बदलाव नहीं हो सकता था लेकिन इसके आगे कोई तो ...Read Moreअंकुश हो जो अन्य किसीके साथ भविष्य में ऎसी स्थिति न हो । इसीलिए उसने भाभी की बात स्वीकार की थी और वह बिना भयभीत हुए पुलिस-स्टेशन गई थी । रह रहकर उसके समक्ष समाज में फैले हुए ये घिनौने व्यभिचार गर्म तेज़ लू के रूप में उसके मनोमस्तिष्क को भूनने लगते । अक्षरा इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पा लो, यहाँ किसीको कुछ पता भी नहीं चलेगा और तुम्हें जीवन
गवाक्ष 34== सत्याक्षरा को पीड़ा में छोड़कर कॉस्मॉस न जाने किस दिशा की ओर चलने लगा । उसके मन में अक्षरा की पीड़ा से अवसाद घिरने लगा था, एक गर्भवती स्त्री को कितना सताकर आया था वह ! उसके ...Read Moreजिधर मुड़ गए, वह उधर चल पड़ा। अपने अदृश्य रूप में वह प्रो.सत्यविद्य श्रेष्ठी के बंगले के समक्ष पहुँच गया था। भीतर जाऊँ अथवा न जाऊँ के पशोपेश में वह बहुत समय तक बाहर से गतिविधियों का निरीक्षण करता रहा । कुछेक क्षणों के पश्चात ही उसने स्वयं को तत्पर कर लिया कि उसे प्रो.तक जाना होगा। कैसा काँच की पारदर्शी दीवार सा होता
गवाक्ष 35== प्रो. श्रेष्ठी ने अपनी पुस्तक का आरंभ किया था ; सत्य एवं असत्य, ’हाँ’ या ‘न’ के मध्य वृत्ताकार में अनगिनत वर्षों से घूमता-टकराता मन आज भी अनदेखी, अनजानी दहलीज़ पर मस्तिष्क रगड़ता दृष्टिगोचर होता है। भौतिक ...Read Moreआध्यात्मिक देह के परे शून्य में कहीं अदृष्टिगोचर संवेदनाओं- असंवेदनाओं, कोमल-कठोर भावनाओं के बीहड़ बनों से गुज़रते हुए ठिठककर विश्राम करने के लिए लालायित पाँच तत्वों से बने शरीर का वास्तव में मोल क्या है, उसे स्वयं भी ज्ञात नहीं ---व्यक्ति कहाँ से आता है ?कहाँ जाता है --? कुछ अता -पता नहीं चलता वह केवल एक इकाई भर है जो अंत में नहीं होगा । वह केवल यह समझने को बाध्य है
गवाक्ष 36== यकायक एक अन्य अद्भुत दृश्य उनके नेत्रों के समक्ष नाचने लगा उनके हस्तलिखित पृष्ठ ऊपर की ओर उड़ते तो रहे लेकिन नीचे ज़मीन पर नहीं आए। प्रोफ़ेसर का मस्तिष्क चकराने लगा, वे विश्वास करते थे यदि प्रकृति ...Read Moreसाथ छेड़खानी न की जाए तब वह सदा सबका साथ देती है। माँ प्रकृति के आँचल में सबके लिए प्रसन्नता व खुशियाँ भरी रहती हैं । उनके जीवन भर का संचित ज्ञान इस प्रकार ऊपर उड़ रहा था मानो उसके पँख उग आए हों, विलक्षण !उनका गंभीर, शांत मन उद्वेलित हो उठा और वे जैसे ही उन पृष्ठों को पकड़ने के लिए उठने लगे, उनके हाथ के नीचे
गवाक्ष 37== कॉस्मॉस के मन को सत्यनिधि की मधुर स्मृति नहला गई । कितना कुछ प्राप्त किया था उस नृत्यांगना से जो उसकी 'निधी'बन गया था। निधी ने भी तो यही कहा था – 'सीखने के लिए शिष्य का ...Read Moreहोना आवश्यक है, वही शिष्य सही अर्थों में कुछ सीख सकता है जो अपने गुरु को सम्मान देता है अर्थात विनम्र होता है। ' दूत ज्ञानी प्रोफ़ेसर के समक्ष विनम्रता से सिर झुकाए बैठा था। “यह छोटा आई और बड़ा आई क्या है?" उसने पूछा । " ये जीव के भीतर का 'अहं'है जो उससे छूटना ही नहीं चाहता, मनुष्य सदा स्वयं को बड़ा तथा महान दिखाने की चेष्टा करता है । उसे झुकना पसंद
गवाक्ष 38== कॉस्मॉस के लिए प्रेम सरल था, संघर्ष कठिन!उसने सोचा यदि वह प्रोफ़ेसर को संघर्ष की भावना से प्रेम की भावना पर ले जा सके तब संभवत:वह आसानी से इस जीवन को समझ सकेगा। यकायक ऊपर अधर में ...Read Moreकाटते हुए कुछ पृष्ठ इस प्रकार से आकर जमने लगे जैसे किसी ने उन्हें एक सूत्र से बांधकर नीचे उतारा हो । कॉस्मॉस ने देखा सबसे ऊपर के पृष्ठ पर लिखा था :- 'जीवन --संघर्ष !' प्रो.श्रेष्ठी के मुख पर एक सरल मुस्कान थी । "आपने बताया प्रेम जीवन है, संघर्ष जीवन है । संघर्ष में कठोरता है, खुरदुरापन है जबकि प्रेम में
गवाक्ष 39== " आपके अनुसार जीवन का क्या लक्ष्य है, उसका ध्येय क्या होना चाहिए?" "जो सारी बातें मैंने तुमसे की हैं वे जीवन से ही संबंधित हैं मेरे दोस्त!जीवन किसी एक प्रकार की वस्तु का नाम नहीं है, ...Read Moreकुछ मिलकर जीवन बनता है। उसके सभी पहलुओं को हम किस प्रकार देखते हैं ?यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। तुम जान गए हो कि पृथ्वी के समस्त प्राणियों में मस्तिष्क है किन्तु केवल मनुष्य को ही उसकी उपयोगिता रूपी उपहार प्रदान किया गया है । हमारे शरीर में प्रत्येक अंग की अपनी महत्ता है। मस्तिष्क में चेतना है, जागृतावस्था
गवाक्ष 40== कॉस्मॉस उलझन में दिखाई दे रहा था । " वह भी बता दो, संभव है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देकर तुम्हारी संतुष्टि कर सकूँ । "मैंने महसूस किया है कि मनुष्य बहुत सी बातों को अनदेखा ...Read Moreरहता है । मैंने बहुत से लोगों को यह कहते सुना है ' सब चलता है---' इस प्रकार त्रुटियाँ करके बार-बार यह कहना औचित्यपूर्ण नहीं है क्या?" "मनुष्य में अच्छाईयां, बुराईयाँ सब हैं । त्रुटि होना स्वाभाविक है, न होना कभी अस्वभाविक भी लगता है किन्तु जब वह अपनी त्रुटियों को बारंबार दोहराता है तथा दूसरों को हानि पहुंचाता है तब उसकी
गवाक्ष 41== कुछ ही देर में कार मंत्री सत्यप्रिय के बंगले के बाहर जाकर रुकी। मार्ग में कुछ अधिक वार्तालाप नहीं हो सका था। मंत्री जी के बंगले के बाहर चिकित्सकों की व अन्य कई लोगों की गाड़ियाँ खडी ...Read Moreकाफी लोग जमा थे और उनके स्वास्थ्य के बारे में चर्चा कर रहे थे। प्रोफेसर विद्य को देखते ही वहाँ उपस्थित लोगों ने उन्हें आदर सहित भीतर जाने दिया था । वे मंत्री जी के कुछेक उन चुनिंदा लोगों में थे जिनसे वहाँ के अधिकांश लोग परिचित थे। कॉस्मॉस को अपने छद्म रूप में ही जाना था। अत: दोनों के मार्ग भिन्न थे किंतु लक्ष्य व उद्देश्य
गवाक्ष 42== चिकित्सकों ने मंत्री जी को मृत घोषित कर दिया। मंत्री जी के सुपुत्र पहले ही से उपस्थित थे, पिता के न रहने की सूचना जानकर उनकी ऑंखें अश्रु-पूरित हो गईं लेकिन मनों में जायदाद के बँटवारे की ...Read Moreप्रारंभ हो गई थी । बहन भक्ति के पहुँचने की प्रतीक्षा करनी ही थी। मंत्री जी अपने कमरे से निकलकर आत्मा के स्वरूप में कॉस्मॉस के साथ अपने आँगन के वृक्ष पर जा बैठे । वे दोनों केवल प्रोफेसर के ज्ञान-चक्षुओं को दिखाई दे रहे थे। डॉ. श्रेष्ठी नीचे अन्य लोगों के साथ बैठे थे । मंत्री जी के दोनों पुत्र
गवाक्ष 43== मंत्री जी कॉस्मॉस के साथ वृक्ष पर बैठकर अपनी मृत्यु का तमाशा देखकर अपने बीते दिनों में पत्नी स्वाति के पास पहुँच गए थे, वे अपने पुत्रों के बारे में भी सोचते रहे थे। काश ! मेरे ...Read Moreको भी उनकी माँ स्वाति जैसी समझदार जीवन-साथी मिल सकती ! बिटिया भक्ति में माँ की समझदारी व गुण सहज रूप से आए थे । मनुष्य-जीवन प्राप्त हुआ है तो मनुष्य की सेवा मनुष्य का धर्म है । आज की परिस्थितियों में जागृत मनुष्य के कुछ कर्तव्य बनते हैं, वह केवल अपने जीवन को ही अपना लक्ष्य समक्ष रखकर नहीं चल सकता। समाज के प्रति जागरूकता उसका दायित्व है। भक्ति स्वामी विवेकानंद के विचारों से बहुत
गवाक्ष 44 एक अजीबोगरीब मनोदशा में कॉस्मॉस ने आत्मा को प्रणाम किया, न जाने किस संवेदना के वशीभूत हो सत्यप्रिय ने उसके माथे पर अदृश्य चुंबन अंकित किया और पवन-गति से सब तितर-बितर हो गया। सत्यव्रत ने अंत:करण ...Read Moreसबको नमन किया तथा पृथ्वी से सदा के लिए विदा ली। एक सूक्ष्म पल के लिए पुष्पों से लदी उनकी पार्थिव देह में जैसे कंपन सा हुआ जिसको केवल ज्ञानी प्रो.श्रेष्ठी तथा कॉस्मॉस समझ सके। परम प्रिय मित्र की बिदाई की अनुभूति से प्रो.पुन:लड़खड़ा से गए, उन्हें पास खड़ी भक्ति ने संभाल लिया। मीडिया को न किसी से सहानुभूति थी, न ही किसी के जाने की पीड़ा । उसे
गवाक्ष 45== वह एक सामान्य मनुष्य की भाँति चल रहा था। प्रोफ़ेसर व भक्ति प्रश्नचिन्ह बने एक-दूसरे की ओर अपलक निहारने लगे । कुछ पल पश्चात वह शिथिल चरणों से लौट आया । "बहुत गंभीर लग रहे हो ?" ...Read Moreने पूछा । "सर मैं दंडित कर दिया गया हूँ ---" " कैसे पता चला ?" "मैं जिस विमान से गवाक्ष से पृथ्वी पर आता था, वह स्वामी ने वापिस मँगवा लिया है । वृक्ष पर मेरे लिए गवाक्ष में प्रयुक्त होने वाली भाषा में सूचना लिखी गई है। मुझको पहले से ही महसूस होने लगा था किन्तु अब स्थिति स्पष्ट रूप से मेरे समक्ष है। मुझे
गवाक्ष 46== ऎसी अध्ययनशील छात्रा के साथ ऐसा क्यों हुआ होगा जो वह इस प्रकार साहस छोड़ बैठी --कॉस्मॉस ने उसके गर्भवती होने की सूचना देकर उन्हें बैचैन कर दिया था। 'जीवन में इस 'क्यों' का ही उत्तर ...Read Moreकरना ही तो सबसे कठिन होता है । ' उनके मन में बवंडर सा उठा । कॉस्मॉस के प्रश्नों के उत्तर देते हुए भी प्रोफेसर ने सोचा ---" क्या ज़िंदगी हमारे साथ और हम ज़िंदगी के साथ खेल नहीं करते ?" उनका मन अपनी प्रिय छात्रा के लिए बहुत उदास था, साथ ही उस भोले कॉस्मॉस के लिए भी जिसने इस पृथ्वी पर आकर यहाँ की चालाकियाँ सीखने का हुनर अपने भीतर उतारना शुरू कर
गवाक्ष 47== कॉस्मॉस सत्यनिधि और उसका अंतिम स्पर्श भुला नहीं पा रहा था, उसकी याद उसे कहीं कोई फाँस सी चुभा जाती । कितने अच्छे मित्र बन गए थे निधी और वह छोटा सा बालक जिसका पिता महानाटककर था ...Read Moreअब जीवन का अवसर मिला है तो कभी न कभी निधी से और उस नन्हे बच्चे से मिलने का प्रयास करेगा जिससे उसने 'बाई गॉड 'कहना सीखा था । उसके नेत्रों में चमक भर आई । हम समाज के लिए ऐसा कुछ कर सकें जो हमें अमर बना दे । " एक जन्म के पश्चात तो मुझे फिर से लौटकर जाना है ---" कॉस्मॉस का चिंतन