मेरे घर आना ज़िंदगी - 16

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मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (16) किसी से मिलना बातें करना, बातें करना अच्छा लगता है। लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान कहाँ! वह तो वीराने में फैला हुआ ऐसा रेगिस्तान है जहाँ रेत के सारे टीले एक से दिखते हैं। और किस्मत में भी बंजारापन । जब देखो बिच्छू का डेरा पीठ पर। योगेश जोशी को घर बेचना था। इत्तफाक से उसी बिल्डिंग की पहली मंजिल पर मुझे टेरेस फ्लैट मिल गया। दो बड़े-बड़े टेरेस एक हॉल से लगा हुआ दूसरा रसोईघर से। फ्लैट मुझे पसंद आया। विभिन्न शहरों से मुम्बई आने वाले मुझसे ज़रूर संपर्क करते, मिलने की