Mere ghar aana jindagi by Santosh Srivastav | Read Hindi Best Novels and Download PDF Home Novels Hindi Novels मेरे घर आना ज़िंदगी - Novels Novels मेरे घर आना ज़िंदगी - Novels by Santosh Srivastav in Hindi Biography (76) 7.2k 25.1k 11 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (1) ज़िंदगी यूँ हुई बसर तनहा काफिला साथ और सफर तनहा जो घर फूँके आपनो कबीर मेरे जीवन में रचे बसे थे। खाली वक्त कभी रहा नहीं। रहा भी तो कबीर के ...Read Moreगुनगुनाती रहती । कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ घर फूंकने में मुझे गुरेज नहीं । मुंबई में 22 बार घर बदला । दो बार शहर बदले। खूंटे से छूटी गाय की तरह दोनों बार मुम्बई वापस। मोह वश नहीं, मोह तो मेरा हर चीज से हेमंत के साथ ही खत्म हो Read Full Story Download on Mobile Full Novel मेरे घर आना ज़िंदगी - 1 1.4k 2.4k मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (1) ज़िंदगी यूँ हुई बसर तनहा काफिला साथ और सफर तनहा जो घर फूँके आपनो कबीर मेरे जीवन में रचे बसे थे। खाली वक्त कभी रहा नहीं। रहा भी तो कबीर के ...Read Moreगुनगुनाती रहती । कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ घर फूंकने में मुझे गुरेज नहीं । मुंबई में 22 बार घर बदला । दो बार शहर बदले। खूंटे से छूटी गाय की तरह दोनों बार मुम्बई वापस। मोह वश नहीं, मोह तो मेरा हर चीज से हेमंत के साथ ही खत्म हो Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 2 559 1.2k मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (2) सातवें -आठवें दशक में जबलपुर संस्कारधानी ही था । वह मेरे स्कूल के शुरुआती दिन थे। मेरे बड़े भाई विजय वर्मा के कारण घर का माहौल बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों की मौजूदगी ...Read Moreचर्चामय था। शिक्षा साहित्य और कला तब शीर्ष पर थी। श्रद्धेय मायाराम सुरजन का जबलपुर की पत्रकारिता और साहित्यिक परिवेश में बहुत बड़ा योगदान है । आज भी सुरजन परिवार नींव का पत्थर बने मायाराम सुरजन के साहित्यिक कार्यों कोपूरी आन बान शान से संभाले हुए हैं। सन 1945 में मायाराम सुरजन ने दैनिक पत्र नवभारत टाइम्स जबलपुर से प्रकाशित Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 3 361 898 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (3) जिन खोजा तिन पाईयाँ सिविल लाइंस के विशाल बंगले को हमें शीघ्र ही छोड़ना पड़ा क्योंकि वहाँ हाईकोर्ट की इमारत बन रही थी । हम लोग रतन नगर कॉलोनी रहने आ ...Read More। रतन नगर कॉलोनी नई बसी कॉलोनी थी। जो शहर से काफी दूर मेडिकल कॉलेज रोड पर थी। हमारा घर सड़क से ऊंचाई पर चट्टानों पर स्थित था। घर सिविल लाइंस के घर के बनिस्बत छोटा था लेकिन बहुत खूबसूरत और खुशनुमा था। घर के पिछवाड़े की बड़ी-बड़ी चट्टानों को उखड़वा कर रमेश भाई ने किचन गार्डन भी लगा लिया Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 4 377 1.2k मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (4) दुखिया दास कबीर है 30 अप्रैल 1999 बनारस का मणिकर्णिका घाट.... मैं छोटी सी तांबे की लुटिया में एहतियात से सहेजे अम्मा के अस्थिपुष्प गंगा की लहरों में विसर्जित कर रही ...Read Moreबचपन से ही वे मुझे अपना बेटा कहती थीं। उनकी इच्छा थी कि मैं ही उन्हें मुखाग्नि दूँ और मैं ही उनकी अस्थियां गंगा में प्रवाहितकरूँ। कमर कमर तक पानी में खड़ी मेरे सब्र का बांध टूट गया था- "अम्मा तुम न कहती थीं कि मैं तुम्हारी बेटी नहीं बेटा हूँ। आज मैंने अपना अंतिम कर्तव्य पूरा किया । लेकिन Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 5 251 1k मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (5) गहरे पानी पैठ उम्र की बही पर सोलहवें साल ने अंगूठा लगाया । वह उम्र थी बसन्त को जीने की, तारों को मुट्ठी में कैद कर लेने की और बांह पसार ...Read Moreआकाश को नापने की। इधर मेरी हमउम्र लड़कियां इश्क के चर्चे करतीं, सिल्क, शिफान, किमखाब, गरारे, शरारे में डूबी रहतीं। मेहंदी रचातीं। फिल्मी गाने गुनगुनातीं। दुल्हन बनने के ख्वाब देखतीं। तकिए के गिलाफ पर बेल बूटे काढ़तीं। मैं कभी अपने को इन सब में नहीं पाती । मेरे अंदर एक ख़ौलता दरिया था जिसका उबाल मुझे चैन नहीं लेने देता Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 6 264 783 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (6) धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय.......... बताया गया था कि हवाई यात्रा 35 मिनट की होगी। उन 35 मिनटों में बेमौसम बौर महके थे जो पोर पोर मुझे महका ...Read Moreथे। मेरे अंदर समंदर हिलोरे ले रहा था और मैं बालूहा तट पर खुद को दौड़ते पा रही थी । राजकोट से मुंबई की उड़ान ने जब सांताक्रुज एयरपोर्ट पर लैंड किया तो गुलाबी शॉल में दुबके हेमंत ने अपनी बेहद चमकीली काली आंखें झपकाईं और विजय भाई ने जो हमें रिसीव करने आए थे उमंगकर हेमंत को गोद में Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 7 633 2.3k मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (7) मेरे लिए मेरे जीवन में आया एक एक व्यक्ति भविष्य के लिए मेरी आँखें खोलता गया फिर चाहे आँखें उससे मिले धोखे से खुली हो या मेरे प्रति ईमानदारी से । ...Read Moreश्रीवास्तव मेरे ईमानदार दोस्तों में से हैं । कहीं एक जगह नौकरी में स्थायित्व नहीं मिला उन्हें। हालांकि वे बड़े बड़े राष्ट्रीय स्तर के अखबारों से जुड़े रहे। वे नवभारत में समाचार संपादक, हिंदुस्तान टाइम्स में सह संपादक, टाइम्स ग्रुप में सीनियर संपादक, नवभारत टाइम्स में संपादक और संझा लोकस्वामी में संपादक के पद पर थे । नौकरियों की वजह Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 8 297 954 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (8) समय बीतता गया। एक दिन अचानक श्रीकांत जी (बाबा नागार्जुन के पुत्र जो अब यात्री प्रकाशन संभालते हैं) का फोन आया "प्रमिला वर्मा जी ने आप की कहानियों की पांडुलिपि भेजी ...Read More। मैं प्रूफ के लिए पाण्डुलिपि कुरियर कर रहा हूँ। " हाँ याद आया प्रमिला जब ऑपरेशन के बाद मुझे देखने आई थी तो मेरी कहानियों की फाइल यह कह कर ले गई थी कि इन्हें पढ़कर तुम्हें वापस कर दूंगी । उस फाइल में धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, शिक, वामा, ज्ञानोदय, सारिका, माधुरी, हंस, वागर्थ, आदि में छपी कहानियाँ थीं। Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 9 264 825 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (9) विरार के फ्लैट का लोन पटाने में दिक्कतें आ रही थीं इसलिए हमने मीरा रोड सृष्टि कॉन्प्लेक्स में निर्मल टॉवर की छठवीं मंजिल पर वन बेडरूम हॉल किचन का फ्लैट विरार ...Read Moreफ्लैट को बेचकरले लिया और पूरा लोन पटा दिया। म Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 10 246 840 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (10) चर्चगेट स्थित इंडियन मर्चेंट चेंबर का सभागार बुक कर लिया । शैलेंद्र सागर, विभूति नारायण राय, काशीनाथ सिंह, भारत भारद्वाज सब पुलिस गेस्ट हाउस में रुकेंगे। निमंत्रण पत्र छप गए बल्कि ...Read Moreबुक पोस्ट से भेज भी दिए। डिनर का एडवांस भी दे दिया। पुरस्कार की तिथि के एक दिन पहले घर में अतिथियों और मुंबई के मेरे खास साहित्यकार मित्रों का घर पर गेट टुगेदर रखा था। चूंकिरमेश ड्रिंक लेते थे अतः उन्होंने सबके लिए ड्रिंक का इंतजाम भी किया था । डिनर हमने ऑर्डर कर दिया था। सो सबके साथ Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 11 225 954 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (11) हेमंत की मृत्यु के बाद मेरी बर्बादी के ग्रह उदय हो चुके थे । मीरा रोड का घर हेमंत के बिना खंडहर सा लगता । जीजाजी का मकान था अहमदाबाद में ...Read Moreखाली पड़ा था। मैंने प्रस्ताव रखा "अहमदाबाद शिफ्ट होना चाहती हूं आपको किराया दूंगी मकान का। " उन्होंने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। मुझे मुंबई से बोरिया बिस्तर समेटना था। हमेशा के लिए छोड़नी थी मुंबई इसलिए फ्लैट भी बेचना था। अच्छा खरीदार भी मिल गया। तीन लाख में खरीदा फ्लैट सात लाख में बिक रहा था। ( इन Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 12 150 894 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (12) आलोक भट्टाचार्य नवोदित लेखिका सुमीता केशवा की किताब एक पहल ऐसी भी का लोकार्पण हेमंत फाउंडेशन के बैनर तले कराना चाहते थे । एक दिन वे सुमीता को लेकर घर आए ...Read Moreकार्यक्रम की योजना पर विचार विमर्श हुआ। तारीख वगैरह निश्चित कर सूर्यबाला दी, नंदकिशोर नौटियाल जी का चयन अध्यक्ष और मुख्य अतिथि के लिए किया गया । कार्ड छपा कर सब को भेजने की जिम्मेवारी सुमीता ने ली । सुमीता का घर में आना जाना शुरू हो गया और धीरे-धीरे हम अच्छे मित्र बन गए। लोकार्पण का आयोजन बहुत भव्य Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 13 186 747 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (13) थक चुकी थी। चाहती थी किसी शांत पहाड़ी जगह जाकर गर्मियां बिताऊँ। अपने अधूरे पड़े उपन्यास "लौट आओ दीपशिखा" को भी पूरा कर लूं। मैंने शिमला में हरनोट जी से पूछा ...Read Moreक्या वे शिमला में राईटर्स होम में मेरे और प्रमिला के 15 दिन रहने का इंतजाम कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि” राइटर्स होम तो उजाड़ पड़ा है अब। वहां कंप्यूटर की क्लासेस चलती हैं। मैं आपके रहने के लिए एक कमरा वाईएमसीए में बुक करवा देता हूं। वहीं सीढ़ियां उतरते ही मेरा यानी हिमाचल पर्यटन विभाग का ऑफिस है Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 14 144 684 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (14) इसी वर्ष नमन प्रकाशन ने सुरेंद्र तिवारी के संपादन में 20वीं सदी की महिला कथाकारों की 10 खंडों में कहानियां छापी। मेरी कहानी “आईरिस के निकट” खंड 8 में छपी। इन ...Read Moreमें कहानियाँ इकट्ठी करने में और उन्हें जन्मतिथि के अनुसार व्यवस्थित करने में सुरेंद्र तिवारी ने बहुत मेहनत की थी। वे अब इस दुनिया में नहीं है पर उनका यह उपहार साहित्य जगत में सदैव याद किया जाएगा। मुम्बई पर बहुत कुछ लिखने की इच्छा थी लेकिन फिलवक्त तो उस पर एक सफरनामा ही लिखकर इति कर ली। मेरा यह Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 15 120 699 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (15) जब राजस्थानी सेवा संघ की स्वर्ण जयंती भाईदास हॉल में मनाई जा रही थी तब माया गोविंद और गोविंद जी से चाय के दौरान पता चला कि वे माया गोविंद पर ...Read Moreकिताब तैयार कर रहे हैं । सृजन के अनछुए प्रसंग जिसमें माया जी से जुड़े साहित्यकारों, पत्रकारों और फिल्मी दुनिया के लोग संस्मरण लिख रहे हैं। आप भी लिखिए न हाँ मैं जरूर लिखूंगी गोविंद जी। आखिर मैं माया जी की बिटिया हूँ। (वे मुझे बिटिया कहकर संबोधित करती थीं ) मैं उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर लिखूंगी। इस पुस्तक Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 16 150 648 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (16) किसी से मिलना बातें करना, बातें करना अच्छा लगता है। लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान कहाँ! वह तो वीराने में फैला हुआ ऐसा रेगिस्तान है जहाँ रेत के सारे टीले एक से ...Read Moreहैं। और किस्मत में भी बंजारापन । जब देखो बिच्छू का डेरा पीठ पर। योगेश जोशी को घर बेचना था। इत्तफाक से उसी बिल्डिंग की पहली मंजिल पर मुझे टेरेस फ्लैट मिल गया। दो बड़े-बड़े टेरेस एक हॉल से लगा हुआ दूसरा रसोईघर से। फ्लैट मुझे पसंद आया। विभिन्न शहरों से मुम्बई आने वाले मुझसे ज़रूर संपर्क करते, मिलने की Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 17 162 651 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (17) सूने घर का पाहुना ज्यूँ आया त्यूँ जाव औरंगाबाद पहुंचकर प्रमिला से लिपट खूब रोई । सब कुछ खत्म । हेमंत...... मुंबई से जुड़ा हर लम्हा जैसे मुट्ठी से रेत की ...Read Moreफिसल गया। अब खाली मुट्ठी है। भीतर तक खाली मैं। खाली होना कितना जानलेवा है। वक्त लगा सम्हलने में। खुद को उस माहौल में खपाने में । बीच-बीच में रचनाओं का प्रकाशन राहत दे जाता। धनबाद झारखंड से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिकाहमारा भारतमें अभिषेक कश्यप ने मेरा यात्रा संस्मरण छापा “नीले पानियों की शायराना हरारत। “ मैंने अभिषेक को Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 18 144 678 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (18) दिल्ली में मौलिक काव्य सृजन द्वारा कृष्ण काव्य सम्मान 20 अक्टूबर को मिलना था । कार्यक्रम के आयोजक सागर सुमन ने मेरे रहने की व्यवस्था की थी। मुझसे मिलने सुरभि पांडे ...Read Moreसे आई थी आते ही लिपट गई। "मेरी बरसों की तलाश पूरी हो गई। मुझे नीली बिंदी की मेरी लेखिका मिल गई। देखो सरकार, मैं आपके लिए नीली बिंदी लाई हूँ। "उसने सुनीता मेरे और अपने माथे पर नीली बिंदी लगाई। मेरे साथ फोटो खिंचवा कर व्हाट्सएप की डीपी में लगाई। वह पूरा दिन मैंने सुरभि के संग बिताया । Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 19 126 549 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (19) इतनी लंबी साहित्यिक यात्राओं के बाद मुझे काफी समय खुश रहना चाहिए था पर मेले की समाप्ति का सूनापन मेरे साथ हो लिया । मेरे साथ अक्सर यही होता है। यह ...Read Moreमुझे ले जाता है कभी हिस्ट्री चैनल, कभी नेशनल जियोग्राफी, कभी डिस्कवरी चैनल की ओर। जानवर, पक्षियों से प्यार है न इसलिए मन बहल जाता है। डिस्कवरी चैनल में मछलियों का पूरा संसार समंदर में दिखा रहे हैं। नौकाओं से बड़े-बड़े जाल समुद्र की लहरों पर फेंके जा रहे हैं। इस जाल में न केवल मछलियां फंसेगी बल्कि वे समेट Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 20 129 711 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (20) इन दिनों कविता के प्रति रुझान तेजी से हो रहा था। कहानी दिमाग में आती ही नहीं थी। सुबह घूमने जाती तो कोई न कोई कविता दिमाग में पकती रहती। सुबह ...Read Moreशाम, रात कई कई दिन वह कविता खुद को लिखवा लेने की जिद करती। एक Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 21 150 750 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (21) कबीर तन पँछी भया, जहाँ मन तहाँ उडि जाय भोपाल बिल्कुल अनजाना शहर। रिश्तेदारों में बस विजयकांत जीजाजी। सभी की जुबान पर बस एक ही बात की क्या जज्बा है आपका ...Read Moreऐसा कदम उठाने को तो पुरुष भी दस बार सोचेगा। क्या करूं फितरत ही ऐसी पाई है । ठहरे हुए जड़ पर्वत कभी पल भर को नयन सुख देते हैं पर बहती नदिया और पहाड़ों से फूटे झरने दूर तलक संग संग चलते हैं। भोपाल में एंट्री भी हरि भटनागर के शब्दों में धमाकेदार हुई । विजय जीजाजी मुझे भोपाल Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 22 159 807 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (22) केरल जाने के लिए मुम्बई से फ्लाइट लेनी थी। मुंबई पहुंचते ही न जाने क्या हो जाता है मुझे । मुंबई की हवाओं में जाने क्या जादू है कि जो एक ...Read Moreमुंबई में रह लिया वह दूर रहकर भी भूल नहीं पाता मुंबई को। मैं भी नॉस्टैल्जिया से गुजर रही थी। रात 3 बजे एयरपोर्ट पहुंचकर देर तक लंबे चौड़े एयरपोर्ट पर चहलकदमी करती रही। ऐसा लग रहा था कि किसी को कहूं कि पहुंच गई एयरपोर्ट । समय पर पहुंचा दिया टैक्सी ने । पर किसे ? मैने ही तो Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 23 141 741 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (23) मेरी ट्रेन 5 घंटे लेट थी । दिल्ली पहुंचते ही भारत भारद्वाज से मिलना था। उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और पिछले साल का प्रियदर्शन के नाम घोषित पुरस्कार भी देना ...Read More। भारत जी के घर पहुंचने से पहले मैंने प्रियदर्शन को फोन किया कि "आपका सम्मान मेरे पास है। आइए मिलते हैं। भारत जी के घर । " बस फिर क्या था प्रियदर्शन जैसे घमंडी, बदमिजाज आदमी ने फेसबुक पर खबर डाल दी कि संतोष श्रीवास्तव सम्मान को सामान कह रही हैं। प्रियदर्शन समाचार चैनल में काम करता है इसलिए Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 24 162 786 मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (24) इन दिनों यूट्यूब चैनलों की बाढ़ सी आ गई है दिल्ली के ललित कुमार मिश्र का यूट्यूब चैनल वर्जिन स्टूडियो नाम से है। उन्होंने मेरी कविताएं लघुकथाएं और कहानियां मांगी । ...Read Moreपरसेंट रॉयल्टी की बात भी की । रचनाएं अमेजॉन और किंडल में भी उपलब्ध रहेंगी । उन्होंने मेरा अकाउंट खोला और "गौतम से राम तक" कविता मेरी ही आवाज में शूट कर वीडियो बनाया। फिर डिजिटल वॉयस वर्ल्ड यूट्यूब चैनल जयपुर के हरिशंकर व्यास और सुनीता राजपाल ने मेरी 8 कविताओं के अलग-अलग वीडियो बनाकर मेरी कलम और आवाज को Read मेरे घर आना ज़िंदगी - 25 - अंतिम भाग 432 2.4k मेरे घर आना ज़िंदगी आत्मकथा संतोष श्रीवास्तव (25) आत्मविश्वास के पद चिन्ह संतोष श्रीवास्तव की रचनाधर्मिता के कई आयाम है। वे एक समर्थ कथाकार, संवेदनशील कवयित्री, जागते मन और अपलक निहारती नजरों वाली संस्मरण लेखिका, न भूलनेवाले लेखे-जोखे के ...Read Moreदेर औऱ दिनों तक याद रखनेवाले यात्रा वृत्तांत लिखनेवाली ऐसी रचनाकार है जो हर विधा में माहिर है। उनका लेखन स्तब्ध भी करता है और आंदोलित भी। उनके कविता संग्रह 'तुमसे मिलकर' की कविताओं से गुजरते हुए यह अहसास होता है कि उनकी दृष्टि दूर तक जा कर न तो ओझल होती है, न भोथरी। वह पाठक को चेतना के Read More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Novel Episodes Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Humour stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Social Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything Santosh Srivastav Follow