पिंकी जो डरपोक था

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पिंकू जब बहुत छोटा था, तब वह सबसे डरता था. कुत्ते, बिल्ली, मुर्गे, मेंढक औरखरगोशों से भी वह डरता था. कारखाने के भोंपू, फेरीवाले की हांक और यहां तककि तबले की तेज थाप भी उसे डरा देती थी. और ऐसे में वह ‘मां’ करता, मिमियाता मां की गोद में दुबक जाया करता था.पिंकू छोटा था, कमजोर था, इसलिए चिड़चिड़ा भी था. घर में हम छह भाई-बहनोंमें सबसे छोटा. सो जिद्दी भी था. पर गुड्डे सा सुंदर और गोरा- चिट्टा बल्कि गुलाबी-सा था. इसलिए सब उसे खूब प्यार करते थे. पिंकू जरा भी रोए, यह हम कतईबदार्र्श्त नहीं कर पाते थे. पिंकू के लाड़ इतने थे कि बस, वह एक गोद से दूसरीगोद बदलता रहता था.पिंकू की उम्र साढ़े तीन साल हुई. अब उसे नर्सरी स्कूल में भर्ती कर दिया गया. स्कूल में जाते ही वह सबसे पहले अपना टिफिन खोलता और डबलरोटी, बर्फीतथा केला गपा गप खा जाता, फिर आया से कहता, ‘‘आंटी मैं घर जाऊंगा.’’उस दिन हम सब खूब हंसे थे, जब पहले-पहल पिंकू अपनी ही परछाई को कोईभयंकर जीव समझ कर चीख मार कर आंगन में दौड़ता हुआ मां की गोद में आछिपा था.मां ने और हम सभी ने बाद में पिंकू भाई को प्यार से दुलार कर समझाया था कियह तुम्हीं हो इससे मत घबराओ. कोई खतरा नहीं है.लेकिन पिंकू भला इतना बड़ा कहां था कि यह बात समझ पाता, फिर वह तो नंबरएक डरपोक भी था, इसलिए उसका डर दूर नहीं हुआ. उल्टे अब तो रोज ही वहपरछाई को देखकर चीखने चिल्लाने लगा. घबरा कर भागते हुए कई बार गिर करउसके घुटने भी छिल गए. और इससे भी खराब बात पिंकू बीमार पड़ गया.मां, जो कि मुहल्ले भर को घरेलू देशी दवाइयां बताती रहती थी, वे अब पिंकू केइस अजीब रोग को न समझ सकी. पिंकू अब बाहर अकेला एक पल का भीनिकल नहीं पाता था. सोते-सोते एकाएक चीख कर उठ जाता, और उसे हरदम हीहल्का-हल्का बुखार रहने लगा.इसके एक-दो दिन बाद ही पिता जी ने डॉक्टर को बुलाया. डॉक्टर ने अपने आलेसे पिंकू को अच्छी तरह परखा, फिर दवाएं लिख कर बोले, इन दवाओं से इसकाबुखार तो उतर जाएगा. पर इसके दिल में जो डर बैठ गया है, उसे दूर करना ज़्यादाजरूरी है.हमारी मां जिनकी बहादुर नानी ने कभी एक गुस्सैल भालू का मुकाबला किया था, उस दिन काफी देर तक सोचती रही कि पिंकू का डर किस तरह से दूर कियाजाए.अगले दिन मां बाजार गई. पिंकू की दवाइयों के साथ उन्होंने रबड़ का एकखिलौना भी खरीदा, जिसे दबाने पर वह बच्चे सा रोता था. घर आकर एक छड़ीके सिरे पर मां ने वह खिलौना कपड़े से लपेट कर कस कर बांधा और फिर पिंकूको गोद में लेकर बाहर आंगन में आई. पिंकू का बदन बुखार से तप रहा था. मां नेउसे खड़ा किया, तो फौरन ही हमेशा की तरह उसकी नजर अपनी परछाई पर पड़ीऔर वह अब चीखे कि उससे पहले ही मां उसे दुलार कर बोली, ‘‘ राजा बेटे, डरोनहीं! यह लो छड़ी और पीटो इसको देखो यह ‘काऊं-काऊं ’ करके रोएगा.मां ने पिंकू की परछाई पर एक छड़ी मारी. रबड़ के खिलौने से रोने की आवाजआई. पिंकू ने चौंककर अपनी परछाई को देखा. अब उसने छड़ी पकड़ी और धीरेसे परछाई को पीटा. परछाई से रोने की आवाज आई. उसके बाद उसने जरा जोरसे पीटा और फिर खूब जोर से परछाई रोती रही. तब पिंकू मां की तरफ देख करहंस पड़ा. मां हंसी, और उस दिन हम सब भी खूब हंसे.उस दिन के बाद ही पिंकू का बुखार उतर गया. अब वह रोजी ही छड़ी ले करअपनी परछाई को पीटता-रूलाता फिरता.कुछ दिनों बाद तो उसने दूसरों की परछाइयों को भी पीटना शुरू कर दिया. अबपिंकू का डर खत्म हो रहा था. अपनी छड़ी से वह मेंढकों और मुर्गों को भी पीटनेलगा था. पिंकू अब नटखट हो रहा था. वह बड़ा हो रहा था और उसकी शैतानियांबढ़ रही थी. उसके काफी दिनों बाद पिंकू आंगन छोड़ दूर-दूर गलियों मैदानों मेंनिकलने लगा. बहादुर पिंकू अब स्कूल जाता था, दोस्तों के साथ खेलता था औरढेरों कहानी-किस्सों की किताबें पढ़ता था.फिर आया वह दिन. जब सबने अचानक खबर सुनी कि पिंकू भारतीय वायु सेना मेंभरती हो गया. सचमुच पिंकू अब एक बहादुर सैनिक बन गया था और खुद सेडरनेवाला पिंकू अब देश का रक्षक तथा दुश्मनों को डरानेवाला पिंकू था.