खिलते पत्थर

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"खिलते पत्थर!" उन्हें इस अपार्टमेंट में आए ज़्यादा समय नहीं हुआ था। ज़्यादा समय कहां से होता। ये तो कॉलोनी ही नई थी। फ़िर ये इमारत तो और भी नई। शहर से कुछ दूर भी थी ये बस्ती। सब कुछ नया - नया, धीरे- धीरे बसता हुआ सा। वैसे ये बात तो है कि ऐसी नई बसती हुई कॉलोनियों में माहौल बेहद तरोताजा होता है। रोज़ नए- नए लोगों का आवागमन, रोज़- रोज़ नई खुलती दुकानें, एक दूसरे से मेल- मिलाप करके जल्दी ही सबसे परिचित हो जाने का जुनून, ये सब बस्ती को जीवंत बनाए रखता है, एकदम वायब्रेंट!