देश और धर्म के परे

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करीब चार साल पहले की बात है मैं अपनी फैमिली के साथ अजमेर शरीफ से वापस लौट रही थी। बारह बजे अजमेर सियालदह ट्रेन आई और हम सब उसमें चढ़ गए। मम्मी ने टिकट पहले से ही हाथ में लिया हुआ था ताकि सीट ढूंढने में परेशानी ना हो। ये हमारी सीट हैं उन्होंने सामान नीचें रखा और मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा। मैं बोगी में इधर उधर देखने लगी। तभी टीटीई साहब आ गए मम्मी ने अपना और बाबा का टिकट पहले ही हाथ में लिया हुआ था उनके मांगने पर उन्हें थमा दिया और मेरा टिकट निकालने