दिवाली

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घना अंधेरा था, हवा के तेज सायं सायं चलने कीआवाज़ उस छोटी सी खिड़की से आ रही थी जिसपे अभी तक पल्ला नहीं लग पाया था। दीपक की रोशनी से पूरा घर रोशन था हर जगह पर , कोई कोना तक बचा नहीं था पूरा घर जगमगा रहा था सिवाय उस कमरे के जिसमें ध्रुव रहता है। उसे रोशनी से उतनी ही नफरत थी जितनी कि अपने आप से। बाहर द्वार पर पटाखे फोड़े जा रहे थे, मिठाइयां बंट रही थी कुछ लोग लेकर आते तो कुछ लोग लेने के लिए आते आने जाने का मिलन चल रहा था सब खुशी