जी हाँ, मैं लेखिका हूँ - 8

  • 5.9k
  • 1.3k

’कहानी’ - 8- ’’ये वो प्रियम्बदा तो नही’’ मैं आॅटो के लिए खड़ी थी। पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखा। मैं चैंक पड़ी। पलट कर देखा तो वो खड़ी थी। मैं उसे देखकर मुस्करा पड़ी। प्रत्युत्तर में वह भी मुस्कराती हुई बड़े ही अपनत्व से मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी हो गयी और मेरा हालचाल पूछने लगी। मैंने भी उसका हाल पूछा और बातों का आदान-प्रदान होने लगा। उस दिन भी वह पूर्व की भाँति खूबसूरत लग रही थी। किन्तु इस खूबसूरत चेहरे के सौन्दर्य के पीछे छिपी उसकी पीड़ा मेरी दृष्टि से छुप न सकी। भले ही