यादों की सुनहरी गली

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दो महीने हो गए थे हमको एक दूसरे को मिले। जब एक बार प्रेम नगर से वापिस लौट रहे थे तो तुमने अनुराग नर्सरी के बाहर चेतक स्कूटर रोक कर कहा था," आओ जरा मेरे साथ ... "हैरान परेशान सी मैं तुम्हारे पीछे पीछे चल दी थी। बाहर से जंग खाये गेट वाला वो मकान अंदर विशाल स्वरूप लिये था । अनेक तरह के डेहलिया ओर क्रोटन को देखकर ही मैं मुग्ध थी ।तभी तुमने धीरे से आकर मेरे कंधे पर हाथ रखा और आँखों से कहा, "आओ ..."और मैं साड़ी को सम्हालते हुए पथरीली जमीन पर पेंसिल हील में चलती