एक दुनिया अजनबी - 41

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एक दुनिया अजनबी 41- "अरे ! अंदर आ जाओ न सुनीला , दरवाज़ा खुला ही है ---" कॉरीडोर के दरवाज़े को ठेलते ही एक लंबी गैलरी सी दिखाई देने लगी |प्रखर के मन में उस लंबी गैलरी को देखने की उत्सुकता भर आई जो नीचे से दिखाई नहीं देती थी | वह अच्छी-ख़ासी लंबी -चौड़ी थी जिसके दोनों ओर महापुरुषों व योगियों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगाई गईं थीं, वे दूर से दिखाई दे रही थीं | सच में, एक अलौकिक अनुभव हो रहा था उसे लेकिन मंदा मौसी सबसे आगे के कमरे की खिड़की में से उन्हें ही देख रही थीं, उन्होंने आगे बढ़कर दरवाज़ा खोल दिया