पूत पांव और पालना

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रात के तीन बजे थे। सुकरात थरमस लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रहा था। उसे थरमस की कॉफी बड़ी नर्स दीदी को देकर शिफ़्ट बदलने का अलार्म बजाना था। अकस्मात पूरे हॉस्पिटल की बत्ती गुल हो गई। सुकरात के हाथ से थरमस छूटते छूटते बचा। पैर में चोट लगी सो अलग। रेलिंग में पैर की उंगलियां गुथ न जाती तो कॉफी भी गिरती और वो खुद भी। अलार्म बजाना तो रह जाता ही, ऊपर से नर्स दीदी को ही उसकी मरहम पट्टी भी करनी पड़ती। एक हाथ से थरमस को पकड़े, दूसरे हाथ से दीवार को टटोलता हुआ सुकरात स्टोर की