प्रतिशोध--भाग(६)

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सत्यकाम गंगातट से माया से बिना बात किए चला तो आया परन्तु उसका मन अत्यधिक विचलित था,भावों की भँवर उसे प्रेमरूपी सरिता में डुबोएं दे रही थीं, माया के होठों के स्पर्श ने उसके तन और मन में कामरूपी अग्नि प्रज्वलित कर दी थीं, उसे कहीं भी शांति नहीं मिल रही थीं, उसें मन में भावों का बवंडर उमड़ पड़ा था,उसकी आँखें बस अब माया को ढ़ूढ़ रहीं थीं,उसका चंचल चित्त बस माया की ओर ही भाग रहा था,उसके मन में उठतीं उमंगों को वो स्वयं ही नहीं समझ पा रहा था कि ये क्या है? प्रेम या वासना या