प्रतिशोध--भाग(७)

  • 5.7k
  • 1.8k

सत्यकाम को मणिशंकर ने जो मार्ग सुझाया था,वो सत्यकाम को भा गया और प्रातः होते ही वो गंगा स्नान के मार्ग पर निकल पड़ा और माया की झोपड़ी जा पहुँचा, उसने एक दो बार माया को पुकारा परन्तु माया ने कोई उत्तर ना दिया और ना ही किवाड़ खोले,अब सत्यकाम के क्रोध की सीमा ना रहीं, उसे लगा कि माया अब भी उससे बात नहीं करना चाहती,वो उदास गंगातट की ओर चल पड़ा और मार्ग में उसे माया भजन गाती हुई दिखीं,उसकी प्रसन्नता का अब कोई भी ठिकाना ना था।। वो माया के निकट पहुँचा ही था कि उसके