मुरझाया फूल

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मुरझाया फूल आज यदि कोई रजनी के चेहरे को देखे तो सहज ही कह सकता था कि वह सूख कर काँटा बन गई है। जिस प्रकार कोई फूल प्रातः की बेला में खिलता है और संध्या के होते ही मुरझा जाता है, रजनी भी फूल की भाँति मुरझा गई थी। आज उसके चेहरे पर न तो हँसी ही थी और न ही कोई विनय। परन्तु आज से पहले यदि कोई रजनी को देखता तो यही कहता कि यह वह रजनी नहीं है। आज रजनी की सारी चंचलता गायब हो चुकी थी। उसका चेहरा पत्थर के समान निश्चेष्ट हो गया