एक दिन...

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दिन को धीरे-धीरे चलते हुए देखना सुखद अनुभव है। लेकिन शाम को विदा कहना उतना ही कठिन। दिन मेरे लिए एक व्यक्ति हो सकता है, जिसके चलने के निशान में धूप की रोशनी अपने पीछे वियोग छोड़ जाती है । घर के भीतर ''दिन'' हर रोज एक रोशनी बनकर आती है, लेकिन व्यस्तता में वह हर रोज शाम को मिलती है । आज दफ्तर के अवकाश में पूरा समय दिन के साथ बना रहा । यूं कहें तो उसकी चाल के साथ। घर के चारों तरफ की खिड़की खोल चुका हूँ, क्योंकि दिन का घर में प्रवेश करने का यही