गुलनार

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गुलनारजैसे ही मेरी नींद खुली, मैंने देखा कि दूर खड़ी वो कातर दृष्टि से मुझे देख रही थी। आँखों की चमक, सेब जैसे गालों का गुलाबीपन बहुत फीका था। मुझे याद है अप्रैल का वो दिन जब मैंने उसे पहली बार देखा था। जैसे ही हमारा ट्रक श्रीनगर के बाहरी इलाके में बने कैम्प में दाखिल हुआ, कुछ बच्चे सड़क के दोनो तरफ खड़े अपने दोनों हाथ हिला कर ज़ोर ज़ोर से उछल रहे थे, मानो हमारी पलटन का स्वागत कर रहे हों। ट्रक से उतर कर उन बच्चों को देख अनायास ही एक मुस्कान तैर गयी मेरे होठों पर। उन