तहजीब

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तहजीब शहर के प्रसिद्ध सिनेमा हॉल के सामने भीड़ जमा थी। सम्पूर्ण देशवासियों के प्रतीक के रूप में हर वर्ग, हर पेशे तथा हर धर्म के लोग यहाँ उपस्थित थे। इतना अधिक जनसमुदाय तो शायद किसी पूजा-स्थल पर भी जमा न होता होगा। इसी भीड़ में एक लड़का इधर-उधर घूम रहा था। नंगे पैर, फटी-सी शर्ट, और उस पर भी मैले-कुचैले दाग लग रहे थे। उसके बाल बिखरे हुए थे और उम्र यही कोई बारह-चौदह के आस-पास होगी। एक हाथ में सिगरेट लिए था। मुँह से इन्जिन के समान धुआँ उगलता हुआ अपने आपको किसी डॉन से कम नहीं समझ