छोटा आदमी या छोटी सोच

  • 10.2k
  • 1
  • 1.4k

जून की गर्मी में, लगभग डेढ़ घंटे से चिलचलाती धूप में, धूल से अटी उस सड़क पर पसीने से भीगी खड़ी मैं शहर को जाने वाली बस का इंतज़ार कर रही थी। एनजीओ के काम से लगभग हर एक डेढ़ महीने में यहाँ आना जाना होता रहता था पर इतनी गर्मी में इस रेतीले टीलों के गाँव में आने का पहला ही अनुभव था। सर पर अपने दुपट्टे की छाँव किये और उसी के किनारे से पसीना पौंछती मैं बार-बार बस के आने की दिशा की ओर देखती और कोई हलचल न पा, मायूस सी हो जाती। शाम होने को