देह अगन की लपट

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देह की अगनलेखक शिव शम्भू बाबू ने अपनी चालीस साल पुरानी डायरी में से जो कथा मुझे पढ़ाई है वह मैं सीधा ही पाठकों को पढ़ाता हूँ।होली पर सब रंग में सराबोर थे लेकिन मैंने देखा कि सुखराम काका जानबूझकर अपने आप को नशे में प्रदर्शित कर रहे थे औऱ कभी इन चाची के मुंह पर तो कभी उन चाची के मुंह पर रंग लगा देते थे । कोई कुछ बोलता तो सिर झटके से हिलाते हुए बोलते -होली है बुरा ना मानो...! दो दिन पहले होली थी और दूज के दिन आई थी सांवली ।हां मुझे उसे देख कर पुराना